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कोई दिहाड़ी मजदूरी करते बना यूनिवर्सिटी टॉपर, किसी ने आंखों की रोशनी गंवाने के बाद भी पाया गोल्ड मेडल

NCG NEWS DESK रांची : रांची विश्वविद्यालय के 36 वें दीक्षांत समारोह में मंगलवार को लगभग 29 हजार छात्र-छात्राओं के बीच डिग्रियां बांटी गईं और इनमें से 80 को गोल्ड मेडल से नवाजा गया, लेकिन इनमें से तीन-चार के गोल्ड मेडल की चमक थोड़ी अलग, थोड़ी अनूठी है।

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इनमें एक हैं अजय पी, जिन्होंने सड़क-बिल्डिंग-खेत-खलिहान में दिहाड़ी मजदूरी करते हुए पढ़ाई की और आज जब राज्यपाल सी.पी. बालाकृष्णन अपने हाथों उन्हें गोल्ड मेडल पहनाया तो उनकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे। इसी तरह योगिक साइंस विषय की पीजी टॉपर मीना कुमारी को पढ़ाने के लिए उनकी सासु मां ने खेत-खलिहानों में मेहनत-मजदूरी की। उर्दू की पीजी टॉपर सदफ कायनात आंखों से देख नहीं पातीं, लेकिन जब उन्हें गोल्ड मेडल मिला तो उनके चेहरे पर खुशी की अद्भुत चमक थी।

अजय पी रांची से करीब चालीस किलोमीटर दूर खूंटी के बिरहू गांव के रहने वाले हैं। घर की माली हालत बेहद कमजोर है। वह पिछले कई सालों से इलाके में बनने वाली सड़कों और बिल्डिंगों में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। ईंट-बालू ढोने के काम के बाद जो वक्त निकलता, उसमें पढ़ाई करते। वह किसी तरह वक्त निकालकर यूनिवर्सिटी की कक्षाएं भी करते रहें। उनके गांव-इलाके के कुछ लोग उन्हें कूली का काम करने की वजह से हिकारत की नजर से देखते थे।

उनके पिता को लोग कहते थे कि अगर मजदूरी ही करनी है तो कॉलेज-यूनिवर्सिटी में बेटे को क्यों पढ़ा रहे हैं? अजय कहते हैं कि कुछ दिनों पहले जब यूनिवर्सिटी ने गोल्ड मेडलिस्ट की लिस्ट जारी की तो उसमें अपना नाम देखकर वह रो पड़े। आज भी राज्यपाल के हाथों मेडल पाने के बाद वह बेहद भावुक हो उठे। अजय क्षेत्रीय भाषा नागपुरी में एमए टॉपर बने हैं। वह आगे शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं।

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पीजी में योगिक साइंस विषय की टॉपर की ख्वाहिश थी कि जब उसे गोल्ड मेडल दिया जाये, तो उसकी सास भी मंच पर मौजूद रहें। संभव हो तो उसका सम्मान उसकी सास को दिया जाये, या सास ही उसे मेडल प्रदान करें। दरअसल यह सपना उन्होंने उस दिन ही देख लिया था, जब उसकी सास ने उसे पढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी थी। मीना बताती हैं कि उनके पति एक एक्सीडेंट की वजह से कामकाज नहीं कर पाते। उसकी सास ही खेतों में मेहनत मजदूरी कर घर चलाती हैं। इसमें मीना भी उन्हें सहयोग कर देती हैं, पर कभी-कभी। सास ने उनकी पढ़ाई कभी बाधित नहीं होने दी, बल्कि हमेशा उनका हौसला बढ़ाती रहीं। मीना चाहती थीं कि जब वे गोल्ड मेडल लें, तो वहां सास जरूर रहें। जब दीक्षांत समारोह की घोषणा हुई, तभी मीना ने इसके लिए विश्वविद्यालय में आवेदन दे दिया था।

विश्वविद्यालय के अधिकारियों से मिलकर इसके लिए आग्रह भी किया था। पर समारोह में सुरक्षा गाडरें और अधिकारियों ने उनकी सास को मंच पर चढ़ने से रोक दिया। मीना ने राज्यपाल से गोल्ड मेडल लिया और नीचे आ गयी। फिर उसने मंच के नीचे मीडिया वालों के बीच वह मेडल अपनी सास को दिया और उनके चरण छुए। फिर कहा-मेरा असली गोल्ड मेडल तो यही है।

गोल्ड मेडलिस्ट की तीसरी प्रेरक कहानी रांची की सदफ कायनात की है। वह डोरंडा हाथीखाना की रहने वाली है। वह स्नातक की पढ़ाई कर रही थीं, तभी बीमारी की वजह से उनकी आंखों से रोशनी पूरी तरह जाती रही। उनकी पढ़ाई छूट गई। उनके तमाम सपने चकनाचूर हो गए थे, लेकिन बाद में उनके माता-पिता ने हौसला दिया। सदफ ने फिर से पढ़ाई शुरू की। उन्होंने फिर से एडमिशन लिया। स्नातक की परीक्षा पास की और इसके बाद उर्दू स्नातकोत्तर में दाखिला लिया।

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उनकी बहन उन्हें किताबें पढ़कर सुनाती रहीं। उन्होंने स्मरण शक्ति पर भरोसा किया। परीक्षा दी और जब रिजल्ट आया तो उनका नाम गोल्ड मेडलिस्ट की फेहरिस्त में चमक रहा था। उनके पिता अख्तर सईदी कहते हैं कि बेटी ने आज मेरा माथा फक्र से ऊंचा कर दिया है। सदफ आगे पीएचडी करके शिक्षा के क्षेत्र में करियर बनाना चाहती हैं।

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