लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसले में हत्या के मामले में 11 साल 9 महीने से जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे अभियुक्त अरुण कुमार उर्फ भुल्ले तिवारी को बरी कर दिया। न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने इस फैसले में धर्मशास्त्रों और न्याय सिद्धांतों का हवाला देते हुए कहा, “दस दोषी भले ही छूट जाएं, लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए।” 11 साल 9 महीने बाद न्याय: हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दी बरी होने की राहत
हत्या का मामला: क्या थी पूरी घटना?
- मामला अम्बेडकर नगर के नहारिया गांव का है, जहां 18 अगस्त 2004 को तिल्थू नामक व्यक्ति की हत्या का आरोप लगाया गया था।
- अभियुक्त अरुण कुमार और उनके साथ अवधेश कुमार सहित तीन अन्य लोगों पर 12 बोर के हथियार से हत्या करने का आरोप था।
- सत्र न्यायालय ने 23 फरवरी 2013 को अरुण कुमार और अवधेश कुमार को दोषी ठहराकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
- विचाराधीन अपील के दौरान, अवधेश कुमार का निधन हो गया। 11 साल 9 महीने बाद न्याय: हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दी बरी होने की राहत
गवाहों में विरोधाभास, साक्ष्य पर सवाल
अरुण कुमार के अधिवक्ता विवेक कुमार राय ने कोर्ट में दलील दी कि:
- गवाहों के बयानों में भारी विरोधाभास है।
- हत्या का कोई ठोस मकसद अभियोजन पक्ष नहीं साबित कर सका।
- अभियोजन पक्ष की मुख्य गवाह सीता देवी को “सिखाई-पढ़ाई गवाह” करार दिया गया। 11 साल 9 महीने बाद न्याय: हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दी बरी होने की राहत
न्यायपालिका ने धर्मशास्त्रों का दिया हवाला
फैसले में न्यायमूर्ति मसूदी ने कहा:
- हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार, न्याय का उद्देश्य सत्य की खोज है।
- याज्ञवल्क्य के विचार उद्धृत करते हुए कहा, “राजा को झूठ और धोखे को छोड़कर सच्चाई के आधार पर न्याय करना चाहिए।” 11 साल 9 महीने बाद न्याय: हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दी बरी होने की राहत
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
न्यायालय ने अपील को मंजूर करते हुए अरुण कुमार उर्फ भुल्ले तिवारी को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।
- यह फैसला न्याय की उस भावना को दर्शाता है, जिसमें निर्दोष को सजा से बचाना सर्वोपरि है। 11 साल 9 महीने बाद न्याय: हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दी बरी होने की राहत