लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत’: इस चमत्कारी पहाड़ से बहती है शुद्ध जलधारा, बिना बिजली 20 हजार लोगों की बुझती है प्यास
दंतेवाड़ा/किरंदुल: छत्तीसगढ़ की लौह नगरी किरंदुल, जहाँ के पहाड़ों से लोहा निकलता है, वहीं एक ऐसा अद्भुत पर्वत भी है जो किसी चमत्कार से कम नहीं। इस पर्वत का नाम है ‘रामाबुटी’, जो लोहे की खदानों के बीच से अमृत समान शुद्ध जल की धारा बहाकर हजारों लोगों की प्यास बुझा रहा है। यह कुदरत का एक ऐसा वरदान है, जिसकी कहानी हैरान कर देने वाली है।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
कुदरत का करिश्मा: जहाँ पहाड़ों से निकलता है लोहा, वहाँ बहती है अमृत की धारा
किरंदुल की पहचान बैलाडीला की लौह अयस्क खदानों से है। यहाँ के पहाड़ों की मिट्टी में आयरन की मात्रा बहुत अधिक है, लेकिन रामाबुटी पर्वत इन सबसे अलग है। इस पहाड़ की चट्टानों से साल के बारह महीने एक अविरल जलधारा बहती है, जिसमें आयरन की मात्रा शून्य है।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
यह जलधारा कभी नहीं सूखती। रोजाना लगभग 7 लाख लीटर शुद्ध पानी यहाँ से निकलता है, जो किरंदुल के 10 वार्डों के करीब 20,000 लोगों के लिए जीवनदायिनी बना हुआ है। गर्मी के मौसम में धारा थोड़ी पतली जरूर हो जाती है, लेकिन इसका प्रवाह कभी बंद नहीं होता।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
ज़ीरो बिजली, न्यूनतम खर्च: पूरे देश के लिए एक मिसाल
रामाबुटी की सबसे खास बात इसका सस्टेनेबल मॉडल है। नगर पालिका को इस पानी को घरों तक पहुँचाने के लिए बिजली की कोई जरूरत नहीं पड़ती। पहाड़ की ऊंचाई से पानी गुरुत्वाकर्षण (Gravity) के कारण अपने आप बड़े-बड़े टैंकों में जमा हो जाता है। नगर पालिका का खर्च सिर्फ पानी को फिल्टर करने के लिए इस्तेमाल होने वाले केमिकल पर होता है।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
नगर पालिका अध्यक्ष रूबी सिंह बताती हैं, “यह राज्य का एकमात्र ऐसा नगरीय निकाय है, जहाँ पानी की सप्लाई में बिजली का खर्च शून्य है। यह रामाबुटी का चमत्कार ही है कि पहाड़ के ऊपर जल का कोई स्रोत न होते हुए भी चट्टानों से पानी रिसता रहता है।”लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
आस्था और प्रकृति का संगम: पर्यटन स्थल बनाने की उठी मांग
रामाबुटी सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि आस्था का भी एक बड़ा केंद्र है। पहाड़ की चोटी पर भगवान शंकर, गणेश जी और बजरंगबली की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जहाँ रोजाना लोग दर्शन करने आते हैं। महाशिवरात्रि और रामनवमी पर यहाँ भव्य आयोजन होते हैं।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत
इसकी ऐतिहासिकता भी गहरी है। लगभग 60-65 साल पहले, आयतीबाई वड्डे नामक एक महिला पुजारी यहाँ रहती थीं। चट्टानों से निकली हरी-भरी लताएं और पौधे इस पूरे पहाड़ को एक खूबसूरत और शांत जगह बनाते हैं, जिससे यहाँ आने वाले लोगों को असीम शांति का अनुभव होता है। इसकी इसी खूबी के कारण स्थानीय लोग और प्रशासन अब इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे हैं।लौह नगरी का ‘अमृत पर्वत