बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर: न बाज़ार, न सही दाम, कलाकारों का दर्द
मुख्य बातें:-
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अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त बस्तर की शिल्पकला के कारीगर उचित बाजार और मूल्य के अभाव में अपनी कलाकृतियां सड़कों पर बेचने को मजबूर।
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पद्मश्री से सम्मानित कलाकारों की कला का भी नहीं मिल रहा सही मोल।
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स्थानीय बाजारों में कौड़ियों के दाम, जबकि शोरूम और महानगरों में कई गुना कीमत।
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प्रशासन और नगर निगम से कलाकारों के लिए उचित विपणन व्यवस्था की मांग।
जगदलपुर (बस्तर): बस्तर, जिसका नाम सुनते ही समृद्ध आदिवासी कला, संस्कृति और परंपरा की छवि उभरती है। यहाँ के शिल्पकारों ने अपनी अद्भुत कला से न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी भारत का नाम रोशन किया है। कई कलाकारों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है, यहाँ तक कि देश ने बस्तर के शिल्पियों को ‘पद्मश्री’ जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से भी नवाजा है। लेकिन, इस गौरवशाली विरासत की जमीनी हकीकत अत्यंत निराशाजनक और मार्मिक है। इसका जीता-जागता उदाहरण हर रविवार को जगदलपुर के संजय मार्केट स्थित हनुमान मंदिर के पास सड़क किनारे देखा जा सकता है।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
सड़क पर सजती बेशकीमती कला, पर कद्रदान कहाँ?
मंदिर के पुजारी ने इन गरीब ग्रामीणों को मंदिर के सामने और सड़क किनारे अपनी बेशकीमती कलाकृतियां बेचने की अनुमति तो दी है, लेकिन सवाल यह उठता है कि सड़क पर बेलमेटल, ढोकरा आर्ट, पीतल, लौह शिल्प, और कौड़ियों से सजे वस्त्रों व टोकरियों का क्या उचित मूल्य मिल पाता होगा? इन कलाकृतियों को गढ़ने में लगने वाले अथक परिश्रम, समय और लागत का अंदाजा केवल विशेषज्ञ ही लगा सकते हैं। पर यहाँ, उन्हें अपनी कला का उचित मूल्य तो दूर, कई बार लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
कीमतों में जमीन-आसमान का अंतर: शोषण का गणित
बस्तर की आदिवासी जीवनशैली और शिल्पकला को गहराई से समझने वाले लोककवि जोगेन्द्र महापात्र ‘जोगी’ इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हैं। वे बताते हैं कि सड़क पर बिक रही इन कलाकृतियों का शिल्पकारों को मेहनताना तक नहीं मिल पाता। विडंबना देखिए, जो बेलमेटल का हाथी यहाँ सड़क पर शिल्पकार से बमुश्किल हजार रुपये में खरीदा जाता है, वही शहरों के शोरूम में पहुँचते ही दस हजार रुपये का हो जाता है। और अगर यही कलाकृति दिल्ली-मुंबई जैसे महानगरों की आर्ट गैलरी में प्रदर्शित हो, तो इसकी कीमत पचास हजार रुपये तक पहुँच जाती है।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
श्री जोगी का सुझाव है कि जिला प्रशासन और नगर निगम को इस दिशा में तत्काल ध्यान देना चाहिए। कम से कम शहर के प्रमुख स्थलों पर इन शिल्पकारों को अपनी कलाकृतियां बेचने के लिए निःशुल्क स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि उनकी मेहनत का कुछ तो वाजिब दाम मिल सके और वे अपने परिवार का भरण-पोषण सम्मानजनक तरीके से कर सकें।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
स्थानीय जनप्रतिनिधि भी चिंतित, पर समाधान कब?
संजय मार्केट हनुमान मंदिर परिसर जिस वार्ड में आता है, वहाँ के पार्षद आलोक अवस्थी भी इस स्थिति से वाकिफ हैं। वे कहते हैं, “बस्तर की पहचान यहाँ की कला-संस्कृति है। ऐसी बेशकीमती कलाकृतियों के लिए एक उचित और स्थायी बाजार स्थल होना नितांत आवश्यक है।” उनका मानना है कि नगर निगम को एक समर्पित शोरूम स्थापित करना चाहिए जहाँ पूरे बस्तर के शिल्पी और उनके परिवार अपनी विश्व प्रसिद्ध कलाकृतियों को सही मूल्य पर बेच सकें। हालांकि, वे यह भी स्वीकार करते हैं कि शहर में शिल्पियों के लिए ऐसा कोई विशेष स्थल नहीं है और न ही इस विषय पर कभी गंभीरता से विचार किया गया, इसलिए बजट में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
कलाकारों का दर्द, उन्हीं की जुबानी
मंदिर के सामने सड़क पर दुकान लगाकर बैठे ग्रामीण कलाकार ‘हरिभूमि’ से अपनी व्यथा साझा करते हुए बताते हैं कि वे कई वर्षों से साप्ताहिक बाजार के दिन यहाँ दुकान लगा रहे हैं। सड़क पर दुकान लगाने के कारण खरीदार उनसे साग-सब्जी की तरह मोलभाव करते हैं। कई बार तो इतनी कम कीमत लगाई जाती है, जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पाती। ऐसे में शाम को उन्हें अपनी कलाकृतियों को कपड़ों और बोरों में बांधकर निराश होकर घर लौटना पड़ता है।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
वे कहते हैं कि कभी-कभार बस्तर घूमने आने वाले बाहरी पर्यटक, खासकर विदेशी, उनकी कला की सही कद्र करते हैं और उचित कीमत भी दे जाते हैं। उन्हीं को वे अपनी कला का सच्चा पारखी मानते हैं।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर
यह स्थिति न केवल बस्तर की गौरवशाली कला परंपरा के लिए चिंताजनक है, बल्कि उन हजारों शिल्पकारों की आजीविका और सम्मान से भी जुड़ी है, जिन्होंने अपनी कला को जीवित रखा है। समय रहते यदि इन कलाकारों को संरक्षण और सही बाजार उपलब्ध नहीं कराया गया, तो यह अनमोल विरासत धीरे-धीरे दम तोड़ सकती है।बस्तर की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकला सड़क पर