बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी, महिला कमांडो बनीं सरेंडर नक्सलियों की बहनें

बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी, महिला कमांडो बनीं सरेंडर नक्सलियों की बहनें
बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी, रक्षाबंधन के मौके पर छत्तीसगढ़ के बस्तर से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है, जो उम्मीद और बदलाव की नई कहानी कहती है। नारायणपुर में बस्तर फाइटर की महिला कमांडो ने उन लोगों की कलाइयों पर राखी बांधी, जिन्होंने दशकों तक बंदूक और हिंसा का रास्ता अपना रखा था। 40 साल के लंबे इंतजार के बाद इन आत्मसमर्पित नक्सलियों ने रक्षासूत्र के इस पवित्र बंधन को महसूस किया और एक नई जिंदगी की ओर कदम बढ़ाया।
जब नम हुईं आंखें: “लग रहा है जैसे अपनी बहन ने राखी बांधी हो”
यह पल बेहद भावुक था। जब महिला कमांडो राखी बांध रही थीं, तो कई समर्पित नक्सलियों की आंखें भर आईं। उन्होंने इन कमांडो को वचन दिया कि वे समाज की मुख्यधारा से जुड़कर एक शांतिपूर्ण जीवन जिएंगे। इस पहल ने न केवल उनके मन में एक भावनात्मक जुड़ाव पैदा किया, बल्कि सालों बाद उन्हें परिवार और त्योहारों के महत्व का भी एहसास कराया।बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी
27 साल जंगल में, परिवार से दूर: एक समर्पित नक्सली की दर्दभरी कहानी
सुकमा निवासी और कभी डिविजनल कमेटी मेंबर रहे मुकेश वट्टी ने अपनी कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि वह महज 14 साल की उम्र में 1997 में नक्सली संगठन में शामिल हो गए थे और लगभग 27 साल तक इसका हिस्सा रहे। संगठन में रहते हुए हथियार बनाने का काम किया और इस दौरान उनकी नसबंदी भी करा दी गई, जिससे परिवार से उनका रिश्ता लगभग खत्म हो गया।बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी
मुकेश ने भावुक होते हुए कहा, “नक्सली संगठन में रक्षाबंधन जैसे त्योहारों की कोई जगह नहीं होती। आज 40 साल बाद पहली बार मेरी कलाई पर राखी बंधी है। मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मेरी अपनी बहन ने आकर यह रक्षासूत्र बांधा हो। यह मेरे जीवन का सबसे खास पल है।”बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी
एक धागा, एक नई शुरुआत: मुख्यधारा में लौटने का संकल्प
ऐसी ही भावनाएं उन सभी पूर्व नक्सलियों की थीं, जो वर्षों तक जंगलों की जिंदगी जीकर अपने परिवार और समाज से कट चुके थे। अब जब उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में वापसी की है, तो वे फिर से इन खुशियों को जीना चाहते हैं। यह आयोजन सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि विश्वास और अपनेपन का एक मजबूत धागा है, जो उन्हें एक बेहतर कल की ओर ले जाने का संकल्प दिलाता है।बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी
इस अनोखी पहल ने साबित कर दिया है कि रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने और जीवन में एक नई, सकारात्मक शुरुआत करने का एक शक्तिशाली माध्यम है।बस्तर में बदला मंजर: 40 साल बाद बंदूक थामने वाले हाथों पर बंधी राखी









