
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का कड़ा रुख: पर्चा लीक को बताया हत्या से भी गंभीर, पुलिस बर्बरता पर भी की सख्त टिप्पणी
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बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का कड़ा रुख: पर्चा लीक को बताया हत्या से भी गंभीर, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हाल ही में दो बड़े फैसलों में अपनी सख्त टिप्पणियों से प्रदेश में न्याय और व्यवस्था को लेकर एक कड़ा संदेश दिया है। एक ओर जहां चर्चित सीजीपीएससी भर्ती घोटाले के आरोपियों की जमानत याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने पर्चा लीक को ‘हत्या से भी गंभीर’ अपराध बताया, तो वहीं दूसरी ओर हिरासत में मौत के मामले में ‘रक्षक के भक्षक’ बनने पर चिंता जताई।
PSC भर्ती घोटाला: ‘यह हत्या से भी गंभीर अपराध’, आरोपियों को जमानत देने से हाई कोर्ट का इनकार
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC) में हुए भर्ती घोटाले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए तीन प्रमुख आरोपियों को हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया। इनमें पीएससी के एक तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक और दो लाभार्थी शामिल हैं, जिन पर गलत तरीके से परीक्षा पास करने का आरोप है।छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का कड़ा रुख: पर्चा लीक को बताया हत्या से भी गंभीर
जस्टिस बिभू दत्त गुरु ने मामले पर बेहद तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “जो प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक करता है, वह लाखों युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करता है। यह कृत्य हत्या से भी गंभीर है।” कोर्ट ने आगे कहा कि इस कृत्य ने पीएससी जैसी प्रतिष्ठित संस्था को शर्मसार किया है और यह मामला ‘बाड़ द्वारा ही फसल खाने’ जैसा है।छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का कड़ा रुख: पर्चा लीक को बताया हत्या से भी गंभीर
क्या है CGPSC घोटाला?
यह मामला 2020 से 2022 के बीच हुई पीएससी परीक्षाओं में हुई भारी गड़बड़ियों से जुड़ा है। सीबीआई जांच में खुलासा हुआ कि पीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी के कहने पर प्रश्न पत्र लीक किए गए। आरोप है कि:
प्रश्न पत्र पहले टामन सिंह के दो भतीजों, नितेश और साहिल सोनवानी को दिए गए।
इसके बाद तत्कालीन परीक्षा नियंत्रक ललित गणवीर ने इन्हें बजरंग पावर एंड इस्पात के निदेशक श्रवण गोयल तक पहुंचाया।
श्रवण गोयल ने यह पेपर अपने बेटे शशांक गोयल और बहू भूमिका कटियार को दिया, जिसके आधार पर उन्होंने डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी जैसे प्रतिष्ठित पद हासिल किए।
आरोपियों ने अपनी जमानत याचिका में तर्क दिया था कि पीएससी के नियमों के तहत ‘भतीजा’ परिवार की परिभाषा में नहीं आता है, लेकिन कोर्ट ने उनके तर्कों को खारिज कर दिया।
हिरासत में मौत पर फैसला: ‘रक्षक ही भक्षक बने’, पुलिसकर्मियों की उम्रकैद 10 साल में तब्दील
एक अन्य महत्वपूर्ण मामले में, हाई कोर्ट ने हिरासत में मौत को लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर गहरी चोट बताया। कोर्ट ने कहा, “जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो यह समाज के लिए एक गंभीर खतरा है।”
यह मामला 2016 का है, जब जांजगीर-चांपा जिले के मुलमुला थाने में नशे में हंगामा करने पर सतीश नोरगे नामक व्यक्ति को हिरासत में लिया गया था, जहां पिटाई से उसकी मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम में उसके शरीर पर 26 चोटें पाई गई थीं।
इस मामले में निचली अदालत ने 2019 में थाना प्रभारी समेत चार पुलिसकर्मियों को हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने इस फैसले को बदलते हुए कहा कि पुलिसकर्मियों का इरादा हत्या का नहीं था, लेकिन वे जानते थे कि उनकी पिटाई के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
इस आधार पर जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की बेंच ने इसे गैर-इरादतन हत्या (IPC 304 भाग-1) मानते हुए सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। कोर्ट ने पुलिसकर्मियों को एससी-एसटी एक्ट के आरोपों से भी बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि उन्हें मृतक की जाति की जानकारी थी। चारों दोषी पुलिसकर्मी अब अपनी बची हुई सजा काटेंगे।









