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सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

परिचय

सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 109, उच्चतम न्यायालय में अपील के प्रावधानों को परिभाषित करती है। यह उन परिस्थितियों को निर्धारित करती है जिनके तहत उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

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उच्चतम न्यायालय में अपील के प्रावधान

संविधान में प्रावधान

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 132, 133, और 134 (क) सर्वोच्च न्यायालय में सिविल मामलों में अपील की व्यवस्था करते हैं।

  • संविधान का अनुच्छेद 133:
    • 1972 के 30वें संशोधन के बाद, सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए निम्नलिखित शर्तों की आवश्यकता होती है:
      1. मामले में व्यापक महत्व का कोई सारवान विधिक प्रश्न शामिल हो।
      2. उच्च न्यायालय का मानना हो कि इस प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हल किया जाना आवश्यक है।

सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 45

सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए विस्तृत प्रक्रिया आदेश 45 में वर्णित है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

सर्वोच्च न्यायालय में अपील की आवश्यक शर्तें

धारा 109 के तहत अपील तभी संभव है जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों:

  1. निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित किया गया हो।
  2. मामला विधिक दृष्टि से व्यापक महत्व का हो।
  3. उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रमाणित किया गया हो कि मामला सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई योग्य है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

प्रमुख अवधारणाएँ

1. निर्णय (Judgment)

निर्णय से तात्पर्य किसी वाद में पक्षकारों के अधिकारों पर अंतिम निर्णय से है।

2. अंतिम आदेश (Final Order)

एक ऐसा आदेश जो पक्षकारों के अधिकारों को अंतिम रूप से तय कर दे।

  • महत्वपूर्ण व्याख्या:
    यदि किसी आदेश से वाद की कार्यवाही समाप्त नहीं होती, तो वह “अंतरिम आदेश” होगा।

3. डिक्री (Decree)

डिक्री का अर्थ है वह न्यायिक निर्णय जो पक्षकारों के अधिकारों का पूर्ण और अंतिम निर्धारण करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

विधिक प्रश्न और उसका महत्व

सारवान विधिक प्रश्न का अर्थ

  • ऐसा विधिक प्रश्न जो:
    • व्यापक सार्वजनिक महत्व रखता हो।
    • पक्षकारों के अधिकारों को सीधे प्रभावित करता हो।
    • जिसका उत्तर पहले से किसी बाध्यकारी निर्णय से तय न हुआ हो। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

प्रमुख निर्णय

  • चुन्नीलाल बनाम सेन्चुरी स्पिनिंग:
    • यदि प्रश्न कठिनाई से मुक्त नहीं है और इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हल किया जाना आवश्यक है, तो वह सारवान विधिक प्रश्न माना जाएगा।
  • संतोष हजारी बनाम पुरुषोत्तम तिवारी:
    • विधि का वह प्रश्न जो विवाद योग्य न हो, उसे “सारवान विधिक प्रश्न” नहीं माना जाएगा।

विशेष उदाहरण

  • पंकजराय भागवा बनाम मोहिन्दर नाथ:
    विवादित दस्तावेज़ की व्याख्या पर आधारित प्रश्न को विधिक प्रश्न माना गया।
  • हीरा विनोध बनाम शेषाम्मल:
    गलत व्याख्या के कारण विधिक सिद्धांत का दुरुपयोग होने पर मामला सारवान प्रश्न बनता है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

निष्कर्ष

धारा 109 और संबंधित प्रावधानों के तहत, केवल उन्हीं मामलों में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है जिनमें विधिक दृष्टि से व्यापक महत्व का प्रश्न हो। यह प्रावधान न्यायिक प्रणाली को सुव्यवस्थित और सारगर्भित बनाने में सहायक है। सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908: धारा 109 और उच्चतम न्यायालय को अपील

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