- क्रान्ति सेना ने किया हसदेव गोहार नामक अद्वितीय प्रदर्शन
- राजधानी में खारुन नदी से विधानसभा बरौदा तक हुआ विरोध प्रदर्शन
- हजारों की संख्या में हसदेव जंगल बचाने जुटे लोग
NCG News desk Raipur:-
रायपुर। हसदेव गोहार: रविवार को राजधानी निवासियों को एक अनोखा प्रदर्शन देखने को मिला । छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना की अगुवाई में हसदेव जंगल काटे जाने के विरोध में हुए अभूतपूर्व आंदोलन के तहत छत्तीसगढ़ के मूल प्रजातियों के छत्तीस पौधे एवं छत्तीस जलपात्रों में हटकेश्वर महादेव को अर्पित खारुन नदी के जल को मानवीय कतार बनाकर घंटो के परिश्रम से विधान ग्राम बरौदा
तक एक हाथ से दूसरे हाथों में गुजारते हुए पहुंचाया गया । आंदोलन में धार्मिकता का कोण देने के पीछे क्रान्ति सेना ने कारण बताया कि हमें लगता है कि धर्म आधारित राजनीति करके केंद्र और राज्य में सत्ता पाने वाली सरकार
को शायद यह भाषा जल्दी समझ में आए और वो हसदेव में आबंटित कोल ब्लाकों को निरस्त करके जंगल के साथ साथ वहां के मूलनिवासियों के आराध्य देवता जो वहां की प्रकृति पेड़ो और पहाड़ों में स्थापित हैं उनका देवस्थान नष्ट ना करें । वहां की जीवन रेखा हसदेव वन, वहां की अद्वितीय संस्कृति, वन आधारित अर्थव्यवस्था का विनाश तुरंत रोकें अन्यथा बुरा अंजाम भोगने को तैयार रहें । (हसदेव गोहार)
बड़े जतन से हजारों हाथों के सहारे विधानसभा भवन क्षेत्र तक पहुंचे छत्तीस पौधों को आंदोलन में भागीदार मातृशक्तियों के द्वारा रोपा गया तथा मातृवत ममता के साथ उन्हें जलपात्रों से सींचा गया । (हसदेव गोहार)
आंदोलनकारियों ने हमें बताया कि औद्योगिक घरानों के हाथों खेलने वाले हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि जो बड़ी चालाकी के साथ छत्तीसगढ़ के विधानसभा में बैठकर जीवन-मरण से जुड़े जल-जंगल की बरबादी के मुद्दों की हत्या कर देते हैं उन गूंगे-बहरे नेताओं को ये छत्तीस पौधे चीख चीख कर हसदेव बचा लेने को आगाह करते रहेंगे । (हसदेव गोहार)
“हसदेव गोहार” आंदोलन की खास बात यह रही कि झुलसती गर्मी और परीक्षाओं के इस मौसम में भी छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना छत्तीसगढ़ की जनता को हसदेव की पीड़ा के साथ जोड़ने में कामयाब रही ।(हसदेव गोहार)
साथ में चल रही झांकी में जंगल कटाई के भयावह परिणाम तथा मानव-हाथी द्वंद को बखूबी दर्शाया गया था । क्रान्ति सेना के आह्वान पर पर्यावरण हितैषी आम जनता के साथ-साथ जोहार छत्तीसगढ़ पार्टी, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा जैसे संगठनों ने भी इस आंदोलन को अपनी सहभागिता प्रदान की। (हसदेव गोहार)
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