भांठापारा-बलौदाबाजार

अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी, रिश्तेदार नाबालिग ने ही टंगिया से कर दी बुजुर्ग की हत्या

बलौदाबाजार: अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी, रिश्तेदार नाबालिग ने ही टंगिया से कर दी बुजुर्ग की हत्या, छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले से रिश्तों को शर्मसार और समाज को झकझोर कर रख देने वाली एक घटना सामने आई है। यहां अमेरा गांव में एक 50 वर्षीय बुजुर्ग की हत्या की गुत्थी को पुलिस ने सुलझा लिया है। जांच में जो खुलासा हुआ है, वह बेहद चौंकाने वाला है। बुजुर्ग का कातिल कोई और नहीं, बल्कि उनकी ही एक नाबालिग रिश्तेदार निकली, जिसने महज इसलिए उनकी जान ले ली क्योंकि वह उसे अनुशासन का पाठ पढ़ाते थे और मोबाइल के इस्तेमाल पर रोक-टोक करते थे।

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डांट-फटकार बनी हत्या की वजह

पुलिस जांच के अनुसार, 50 वर्षीय मृतक पुरुषोत्तम यादव अपनी नाबालिग रिश्तेदार को अक्सर अनुशासन में रहने और सही आचरण की नसीहत देते थे। वह उसे मोबाइल पर ज्यादा बात करने से भी मना करते थे। यह रोक-टोक और डांट-फटकार नाबालिग लड़की के मन में इस कदर चुभ गई कि उसके अंदर गुस्सा और विद्रोह की भावना पनपने लगी। इसी गुस्से में आकर उसने एक दिन खौफनाक कदम उठा लिया। अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी

ऐसे हुआ मामले का खुलासा

पुलिस के मुताबिक, यह वारदात बीते 12 अगस्त को सुबह 10 से 12 बजे के बीच अंजाम दी गई थी। हत्या की सूचना मिलते ही पुलिस और फॉरेंसिक (FSL) टीम ने मौके पर पहुंचकर जांच शुरू की। जब पड़ोसियों और रिश्तेदारों से पूछताछ की गई तो शक की सुई नाबालिग पर आकर टिक गई। अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी

शुरुआत में नाबालिग लड़की ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की और लगातार अपने बयान बदलती रही। लेकिन जब पुलिस ने मनोवैज्ञानिक तरीके से कड़ाई से पूछताछ की, तो वह टूट गई और उसने अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसने स्वीकार किया कि लगातार की जा रही डांट से परेशान होकर उसने लोहे की टंगिया से बुजुर्ग के सिर और चेहरे पर वार कर उनकी हत्या कर दी। पुलिस ने आरोपी नाबालिग को 13 अगस्त को हिरासत में लेकर किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश करने की कार्रवाई पूरी की। अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी

समाज के लिए एक गंभीर सबक

यह घटना सिर्फ एक अपराध की कहानी नहीं है, बल्कि यह बदलते सामाजिक ताने-बाने और पीढ़ी के बीच बढ़ते अंतर (Generation Gap) पर एक गंभीर चेतावनी भी है। यह मामला दर्शाता है कि अनुशासन जरूरी है, लेकिन बच्चों के साथ संवाद और प्रेम का सेतु बनाना उससे भी ज्यादा आवश्यक है। कठोर शब्द और लगातार की जाने वाली डांट-फटकार किशोर मन में विद्रोह और गुस्से का ऐसा बीज बो सकती है, जिसके परिणाम इस तरह की त्रासदियों में बदल सकते हैं। समाज और अभिभावकों को यह समझना होगा कि बच्चों की भावनाओं को समझते हुए उन्हें धैर्य और प्रेम से सही-गलत का फर्क समझाना ही सही रास्ता है। अनुशासन का पाठ पढ़ाना पड़ा भारी

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