हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के आदेश को ‘कलंकपूर्ण’ करार दिया
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ – छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक चिकित्सक की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि राज्य शासन द्वारा जारी किया गया आदेश, जिसमें डॉक्टर की सेवा समाप्त कर दी गई थी, एक कलंकपूर्ण आदेश है और इसमें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 का उल्लंघन किया गया है। कोर्ट ने डॉक्टर को विभागीय जांच में शामिल करने और उसे सुनवाई का उचित अवसर देने की बात कही। हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर सवाल, डॉक्टर की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त
मामला डॉक्टर के खिलाफ अनुशासनहीनता के आरोप का
यह मामला शराब कारोबारी अनवर ढेबर के इलाज से जुड़ा है। डॉ. प्रवेश शुक्ला, जो गैस्ट्रो सर्जन के रूप में कार्यरत हैं, ने रायपुर सेंट्रल जेल से इलाज के लिए लाए गए ढेबर को उचित इलाज के लिए एम्स रेफर किया था। इसके बाद, स्वास्थ्य विभाग ने डॉ. शुक्ला के खिलाफ अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर उनकी सेवा समाप्त कर दी और गोलबाजार थाने में एफआईआर दर्ज कराई। हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर सवाल, डॉक्टर की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त
किस प्रकार हुआ था विभागीय जांच का उल्लंघन?
डॉ. शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि विभागीय जांच किए बिना और उन्हें उचित सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। उन्होंने कहा कि यह आदेश उनके करियर को नुकसान पहुंचाने वाला है, क्योंकि इसके बाद उन्हें कलंकपूर्ण आरोपों का सामना करना पड़ा। हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर सवाल, डॉक्टर की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त
स्पेशलिस्ट डॉक्टर की छवि को नुकसान
डॉ. शुक्ला ने अपनी याचिका में कहा कि वह सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर हैं और उन्होंने सरकारी अस्पताल में सेवा देने का निर्णय लिया था। उन्हें कोलोनोस्कोपी की सुविधा नहीं मिलने पर उन्होंने मरीज को अन्य सरकारी अस्पताल में भेजा, जिसे अनुशासनहीनता के तौर पर देखा गया। हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर सवाल, डॉक्टर की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त
कोर्ट ने 8 अगस्त का आदेश किया निरस्त
हाईकोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान यह निर्णय लिया कि 8 अगस्त 2024 को जारी आदेश को निरस्त किया जाता है क्योंकि इसमें डॉक्टर को विभागीय जांच का अवसर नहीं दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि ऐसे आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं और इसे निरस्त किया जाता है। हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी: स्वास्थ्य विभाग के अफसरों के रवैये पर सवाल, डॉक्टर की सेवा समाप्ति का आदेश निरस्त