राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिकार, मंदिर की भूमि पर पुन: स्थापना
हाईकोर्ट ने अजमेर राजस्व बोर्ड के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा - जमीन देवता की है, नाबालिग के अधिकारों की होगी रक्षा

जयपुर, राजस्थान: राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिकार, मंदिर की भूमि पर पुन: स्थापना, राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 35 साल पुरानी उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें अजमेर राजस्व बोर्ड द्वारा श्री गोपालजी मंदिर की भूमि को राजस्व रिकॉर्ड में “पुनः दर्ज” करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विचाराधीन भूमि स्वयं एक देवता की है, जिसे कानून की नज़र में एक शाश्वत नाबालिग माना जाता है। यह फैसला मंदिरों की संपत्ति और देवताओं के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
न्यायालय ने नाबालिग देवता के अधिकारों पर दिया जोर
जस्टिस अवनीश झिंगन ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के प्रावधानों के तहत, एक नाबालिग की भूमि – इस मामले में मंदिर की मूर्ति/देवता – के खातेदारी या काश्तकारी अधिकार किसी खुदकाश्त काश्तकार या उप-काश्तकार को नहीं दिए जा सकते, चाहे उनका नाम रिकॉर्ड में दर्ज हो या नहीं।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “भूमि मंदिर की है और तदनुसार राजस्व रिकॉर्डों में दर्ज की गई थी। कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि मूर्ति एक नाबालिग है…।” इस टिप्पणी के साथ, न्यायालय ने ‘मूर्ति मंदिर श्री नियमजी लक्ष्मणगढ़ बनाम राजस्थान राज्य और अन्य (2008)’ मामले में खंडपीठ के एक फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि देवता शाश्वत नाबालिग हैं और उनके अधिकारों की रक्षा न्यायालयों द्वारा की जानी चाहिए।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका
जमाबंदी में त्रुटि और देवस्थान विभाग का अनुरोध
याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उनके पूर्वज संवत 2012 से पहले भूमि पर खेती कर रहे थे और जमाबंदी संवत 2026-29 के आधार पर भी भूमि उनके नाम पर दर्ज की गई थी। हालांकि, राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार, भूमि शुरू से ही मंदिर की थी और जमाबंदी संवत 2026-29 में याचिकाकर्ता के पूर्वजों के नाम पर यह बिना किसी सक्षम प्राधिकारी के आदेश के गलत तरीके से दर्ज की गई थी।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका
अदालत ने इस बात पर गौर किया कि बोर्ड के निष्कर्षों के अनुसार, संवत 2012-15 और 2018-21 के लिए जमाबंदी में, विचाराधीन भूमि पुजारी के माध्यम से मंदिर के नाम पर पंजीकृत थी, जिसे कभी चुनौती नहीं दी गई। न्यायालय ने कहा कि यह निर्विवाद है कि विचाराधीन भूमि शुरू से ही मंदिर के नाम पर दर्ज थी। देवस्थान विभाग के अनुरोध पर ही जमाबंदी में सुधार के लिए संदर्भ दिया गया था।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका
कानून का उल्लंघन और न्याय की विजय
अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि याचिकाकर्ता के पक्ष में की गई म्यूटेशन प्रविष्टि अधिनियम की धारा 19 का उल्लंघन है। कब्जे के आधार पर याचिकाकर्ता देवता की भूमि के खातेदारी अधिकारों का दावा नहीं कर सकते थे। धारा 19(1) का प्रावधान स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को खातेदारी अधिकार प्रदान न करने का अपवाद बनाता है जो धारा 46 में सूचीबद्ध हैं, जिसमें नाबालिग भी शामिल हैं। यह कानून नाबालिगों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक लाभकारी प्रावधान है।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका
न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि संदर्भ देरी से दिया गया था, यह कहते हुए कि अधिनियम की धारा 82 में संदर्भ के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, और यह मामले के तथ्यों पर निर्भर करता है। सभी दलीलों और तथ्यों पर विचार करने के बाद, राजस्थान हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया, जिससे श्री गोपालजी मंदिर की भूमि पर देवता का अधिकार पुनः स्थापित हो गया। यह फैसला मंदिरों की संपत्तियों और धार्मिक न्यासों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत मिसाल कायम करेगा।राजस्थान हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 35 साल बाद ‘देवता’ को मिला उसका अधिका









