नई दिल्ली। महिलाओं के खिलाफ हिंसा या भेदभाव की चर्चा जब भी होती है, अक्सर यह ध्यान नहीं दिया जाता कि उन्हें मौखिक या लिखित रूप से किस प्रकार संबोधित किया जा रहा है। लंबे समय से, पारंपरिक रूप से स्वीकृत कुछ शब्दों और संबोधनों का उपयोग किया जाता रहा है, जो महिलाओं के प्रति अव्यक्त असम्मान को दर्शाते हैं।
हालांकि, अब इस पर बदलाव आ रहा है। जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने तलाकशुदा महिलाओं को ‘डाइवोर्सी’ कहकर संबोधित करने पर रोक लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी महिला को केवल उसके तलाकशुदा होने के आधार पर ‘डाइवोर्सी’ कहना पूरी तरह से अनुचित है। अब से, महिलाओं को उनके नाम से पहचाना जाएगा, न कि उनके वैवाहिक स्थिति के आधार पर। अदालत ने यह भी कहा कि अगर भविष्य में किसी याचिका या अपील में महिला को ‘डाइवोर्सी’ कहकर संबोधित किया गया, तो वह याचिका खारिज कर दी जाएगी। महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा पर अहम फैसला: अदालत का दृष्टिकोण बदलने वाला निर्णय
महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण शब्दों पर सुप्रीम कोर्ट का दिशा-निर्देश
यह पहला मौका नहीं है जब किसी अदालत ने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण शब्दों के इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त की है। 2023 में, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक ‘हैंडबुक’ जारी किया था, जिसमें अदालतों में महिलाओं के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल न करने के लिए दिशा-निर्देश दिए गए थे। इस हैंडबुक में साफ तौर पर कहा गया था कि महिलाओं के लिए ‘वेश्या’, ‘बदचलन’, ‘धोखेबाज’ जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। अदालतों ने यह भी बताया था कि महिलाओं के लिए शब्दों का चयन हमेशा सम्मानजनक और बिना किसी भेदभाव के होना चाहिए। महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा पर अहम फैसला: अदालत का दृष्टिकोण बदलने वाला निर्णय
सरकारी कार्यों में भी भेदभावपूर्ण भाषा का इस्तेमाल
हालांकि, अदालतें लगातार महिला विरोधी शब्दों के प्रयोग पर रोक लगा रही हैं, सरकारी कार्यों में अभी भी लिंग आधारित भेदभावपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। जब हम बात करते हैं जाति और धर्म से परे रहने की, तो वही दृष्टिकोण महिलाओं के संदर्भ में लागू नहीं होता। विभिन्न सरकारी दस्तावेजों में महिलाएं अपनी वैवाहिक स्थिति से पहचानी जाती हैं, जो कि उनकी व्यक्तित्व या उपलब्धियों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा पर अहम फैसला: अदालत का दृष्टिकोण बदलने वाला निर्णय
समाज का दृष्टिकोण बदलने की दिशा में अहम कदम
कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के प्रति समाज का नजरिया बदलने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। यह निर्णय न केवल महिलाओं के लिए सम्मानजनक शब्दों के प्रयोग की दिशा में अहम है, बल्कि इससे अदालतों और सरकारी प्रक्रियाओं में भी सकारात्मक बदलाव आएगा। महिला का असली पहचान व्यक्तित्व और सफलता से होनी चाहिए, न कि उसकी वैवाहिक स्थिति से। महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा पर अहम फैसला: अदालत का दृष्टिकोण बदलने वाला निर्णय