छत्तीसगढ़ में पोला तिहार की धूम: मिट्टी के बैलों से सजे बाजार, कहीं पकवान से होती है खिलौनों की खरीदारी

मुख्य बिंदु:
छत्तीसगढ़ का पारंपरिक कृषि पर्व ‘पोला तिहार’ पूरे प्रदेश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
बाजारों में मिट्टी के रंग-बिरंगे बैलों और रसोई के खिलौनों (चुकिया-पोरा) की धूम।
बलौदाबाजार के कोरदा गांव में 128 साल पुरानी अनूठी परंपरा, जहां पैसों से नहीं, पकवान से बिकते हैं खिलौने।
यह पर्व कृषि संस्कृति, पशुधन के प्रति सम्मान और पारिवारिक मूल्यों का प्रतीक है।
रायपुर: छत्तीसगढ़ आज अपनी लोक संस्कृति और परंपरा के सबसे खूबसूरत त्योहारों में से एक ‘पोला तिहार’ के रंग में सराबोर है। यह पर्व कृषि में बैलों के योगदान के प्रति कृतज्ञता जताने और घर की बेटियों को गृहस्थी के गुर सिखाने का एक अनूठा संगम है। शहरों से लेकर गांवों तक के बाजार रंग-बिरंगे मिट्टी के बैलों, चुकिया-पोरा (रसोई के छोटे बर्तन) और अन्य खिलौनों से सज गए हैं, जिन्हें खरीदने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ रही है।पोला तिहार
कोरदा गाँव की अनोखी परंपरा: पैसों से नहीं, पकवान से मिलते हैं खिलौने
बलौदाबाजार जिले का कोरदा गाँव इस पर्व को एक अनोखे अंदाज में मनाता है, जहाँ 128 वर्षों से एक अद्भुत परंपरा जीवित है। यहाँ खिलौनों की खरीदारी रुपए-पैसे से नहीं, बल्कि घर में बने पारंपरिक पकवानों जैसे ठेठरी, खुरमी, बड़ा और पूड़ी से की जाती है। गांव की महिलाएं और बेटियां तालाब के पास 6 फीट चौड़ा ‘घुंदिया’ (मिट्टी का घर) बनाती हैं और अपने बनाए पकवानों के साथ बैठती हैं। जैसे ही खिलौनों का बाजार सजता है, वे इन पकवानों के बदले अपनी पसंद के खिलौने खरीदती हैं। यह परंपरा न केवल अनूठी है, बल्कि आपसी प्रेम और सौहार्द का प्रतीक भी है।पोला तिहार
क्यों खास है पोला तिहार?
पोला तिहार केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि कृषि और पशुधन के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व है।पोला तिहार
बैलों का सम्मान: किसान इस दिन अपने बैलों को नहलाकर सजाते हैं, उनकी पूजा करते हैं और उन्हें स्वादिष्ट भोजन कराते हैं। यह साल भर खेतों में मेहनत करने वाले पशुओं के प्रति कृतज्ञता का भाव है।
बेटियों का त्योहार: वहीं दूसरी ओर, बच्चियां मिट्टी के बर्तनों (चुकिया-पोरा) से खेलकर गृहस्थी का प्रबंधन सीखती हैं। यह खेल-खेल में उन्हें भविष्य की जिम्मेदारियों के लिए तैयार करता है।
महंगाई के बावजूद उत्साह बरकरार
इस साल मिट्टी और रंगों के दाम बढ़ने से खिलौनों की कीमतों में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है। मिट्टी के बैलों की जोड़ी 100 रुपये से लेकर 300 रुपये तक बिक रही है, जबकि चुकिया-पोरा का सेट 100 रुपये के आसपास उपलब्ध है। मूर्तिकारों का कहना है कि लागत बढ़ने के बावजूद खरीदारों के उत्साह में कोई कमी नहीं है, और इस बार बड़े आकार के बैलों की विशेष मांग देखी जा रही है।पोला तिहार









