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सुप्रीम कोर्ट: रिट अपील पर फैसला करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क आवश्यक

रिट अपील पर सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि रिट अपील का निपटारा करते समय अपीलीय न्यायालय को स्वतंत्र रूप से सोचने और कम-से-कम कुछ तर्क प्रस्तुत करने चाहिए। यह बयान उत्तर प्रदेश राज्य बनाम प्रेम कुमार शुक्ला मामले में आया, जहां इलाहाबाद उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच के फैसले को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट: रिट अपील पर फैसला करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क आवश्यक

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का विवादास्पद निर्णय

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने एक रिट याचिका पर फैसला देते हुए रायबरेली के जिला विद्यालय निरीक्षक को निर्देश दिया था कि वे रिट याचिकाकर्ता को सहायक शिक्षक (साहित्य) के पद के लिए नियमित वेतन और बकाया का भुगतान करें।

हालांकि, उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने इस फैसले को खारिज कर दिया, लेकिन कोई स्वतंत्र तर्क नहीं दिया। बेंच ने अपने निर्णय में सिर्फ एकल पीठ के आदेश के पैरा 7 से 15 को दोहराया। सुप्रीम कोर्ट: रिट अपील पर फैसला करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस मामले को लेकर उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच पर टिप्पणी की। पीठ ने कहा,

“डिवीजन बेंच ने अपीलीय अधिकार का सही तरीके से प्रयोग नहीं किया। रिट अपील पर निर्णय करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क होना चाहिए।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पुनः विचार के लिए उच्च न्यायालय को भेज दिया है। सुप्रीम कोर्ट: रिट अपील पर फैसला करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क आवश्यक

हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

संविधान का अनुच्छेद 226 और रिट अपील

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट अपील के मामलों में यह सुनिश्चित करने की बात कही कि अपीलीय न्यायालय स्वतंत्र तर्क और न्यायिक सोच का उपयोग करे। सुप्रीम कोर्ट: रिट अपील पर फैसला करते समय स्वतंत्र सोच और तर्क आवश्यक

महत्वपूर्ण जानकारी:

  • मामला: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम प्रेम कुमार शुक्ला
  • केस संख्या: CA 1690 of 2022
  • तारीख: 28 फरवरी 2022
  • कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना
  • संदर्भ: 2022 लाइव लॉ (एससी) 249

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