मंदिर की स्थापना और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1982 में महंत श्री गणपत परिमाराय द्वारा इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, और 2006 में प्राण-प्रतिष्ठा के बाद इसे आम जनता को समर्पित किया गया। यह मंदिर ओडिशा से आए उत्कल समाज के प्रयासों का परिणाम है, जिन्होंने पूरी की तर्ज पर इसे चिरमिरी में बनवाने का संकल्प लिया था। इसका उद्देश्य लोगों को बार-बार पूरी जाने की आवश्यकता से मुक्त करना था। चिरमिरी का जगन्नाथ मंदिर: अद्वितीय डिज़ाइन और धार्मिक आस्था का प्रतीक
अद्भुत वास्तुकला और धार्मिक महत्व
मंदिर की बाहरी दीवारों पर देवी-देवताओं की सुंदर प्रतिमाएँ उकेरी गई हैं, जो इसकी धार्मिक और कलात्मक महत्ता को दर्शाती हैं। मुख्य प्रवेश द्वार पर भैरव बाबा और महावीर हनुमान की मूर्तियाँ तथा गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की भव्य प्रतिमाएँ स्थापित हैं। प्रवेश द्वार पर गरुड़ की मूर्ति भगवान विष्णु के वाहन के प्रतीक के रूप में विराजमान है। चिरमिरी का जगन्नाथ मंदिर: अद्वितीय डिज़ाइन और धार्मिक आस्था का प्रतीक
त्योहारों और मेलों का केंद्र
मंदिर में हर साल महाशिवरात्रि, रथयात्रा (गुण्डिचा यात्रा) और दोनों नवरात्रों में भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इन आयोजनों के दौरान विशेष पूजा-अर्चना, भंडारा और जसगीत होते हैं। इन त्योहारों पर श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति मंदिर की धार्मिक महत्ता को दर्शाती है। चिरमिरी का जगन्नाथ मंदिर: अद्वितीय डिज़ाइन और धार्मिक आस्था का प्रतीक
धार्मिक और पर्यटन स्थल का समागम
चिरमिरी का जगन्नाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह मंदिर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को सजीव रूप में प्रस्तुत करता है। चिरमिरी का जगन्नाथ मंदिर: अद्वितीय डिज़ाइन और धार्मिक आस्था का प्रतीक