लाल बहादुर शास्त्री: एक साधारण जीवन से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, लाल बहादुर शास्त्री, का जीवन प्रेरणादायक संघर्ष और सादगी से भरा रहा है। 2 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाई जाती है। उनका जन्म 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। बचपन में ही पिता का निधन हो जाने के बाद उनका लालन-पालन उनके चाचा ने किया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, शास्त्री जी ने पढ़ाई का सफर जारी रखा और देश के सबसे सम्मानित नेताओं में शुमार हुए।
तैरकर पार करते थे गंगा नदी, सिर पर रखी होती थीं किताबें
शास्त्री जी को स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के लिए रोज़ाना कई मील पैदल चलना पड़ता था। उनके पास नाव का किराया न होने के कारण, वे गंगा नदी तैरकर पार करते थे। किताबों को सिर पर बांधकर रखते ताकि वे भीग न जाएं। यह संघर्ष उनकी मेहनत और लगन का अद्भुत उदाहरण है।
कैसे मिला ‘शास्त्री’ नाम
लाल बहादुर शास्त्री को 1925 में वाराणसी के काशी विद्यापीठ से स्नातक की उपाधि मिलने के बाद “शास्त्री” की उपाधि मिली, जो शास्त्रों के ज्ञान का प्रतीक है। अपने पूरे जीवन में उन्होंने जाति व्यवस्था का विरोध किया और अपने नाम के साथ कोई उपनाम नहीं जोड़ा।
प्रधानमंत्री रहते लिया लोन, खरीदी कार
प्रधानमंत्री रहते हुए भी शास्त्री जी की सादगी की मिसाल मिलती है। उनके परिवार ने कार खरीदने की इच्छा जाहिर की, लेकिन शास्त्री जी के पास पैसे नहीं थे। उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक से 5,000 रुपये का लोन लिया और फिएट कार खरीदी। यह कार आज भी नई दिल्ली स्थित शास्त्री मेमोरियल में सुरक्षित है।
श्वेत क्रांति का आरंभ
1965-66 के सूखे के दौरान शास्त्री जी ने श्वेत क्रांति आंदोलन शुरू किया, जिसका उद्देश्य किसानों को अधिक गेहूं और चावल उगाने के लिए प्रेरित करना था। इससे देश के खाद्य संकट को कम करने में मदद मिली।
ताशकंद समझौता और निधन
1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद, शास्त्री जी ताशकंद गए थे जहां पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से समझौता वार्ता हुई। लेकिन, वार्ता के कुछ ही घंटों बाद, 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद देश ने एक महान नेता को खो दिया।