आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच सामंजस्य हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है। प्रयागराज में चल रहे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मेले में ऐसे ही एक अद्भुत संत, डॉक्टर योगानंद गिरी, की कहानी सामने आई है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से धर्म और विज्ञान पर पीएचडी करने वाले इस संत ने अपनी शिक्षा और तपस्या के जरिए यह संदेश दिया है कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। ज्ञान और धर्म की ताकत: जब संतों ने विज्ञान को चुनौती दी
धर्म और विज्ञान का अद्भुत संगम
डॉ. योगानंद गिरी, जो श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा से जुड़े हैं, ने धर्म और विज्ञान पर शोध किया है। उनके अनुसार, यह धारणा गलत है कि विज्ञान और धर्म एक-दूसरे के विरोधी हैं। उन्होंने अपने शोध में दिखाया कि सनातन धर्म के कई पहलू वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सिद्ध हो चुके हैं। उदाहरण के तौर पर, पीपल और तुलसी जैसे वृक्षों की पूजा, जो न केवल आध्यात्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी ऑक्सीजन देने में महत्वपूर्ण हैं। ज्ञान और धर्म की ताकत: जब संतों ने विज्ञान को चुनौती दी
सनातन धर्म की वैज्ञानिकता
डॉ. गिरी ने बताया कि सनातन धर्म में शुरू से ही विज्ञान मौजूद है। उन्होंने तुलसी के पौधे का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। पीपल और तुलसी जैसे पौधों के महत्व को समझाने वाले ये सिद्धांत बताते हैं कि सनातन धर्म ने वैज्ञानिक पहलुओं को बहुत पहले ही समझ लिया था। ज्ञान और धर्म की ताकत: जब संतों ने विज्ञान को चुनौती दी
आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता
डॉ. योगानंद गिरी ने यह भी साझा किया कि आध्यात्मिक ज्ञान न केवल व्यक्ति को आंतरिक शांति देता है, बल्कि उसे ब्रह्मांडीय सत्य को समझने की क्षमता भी प्रदान करता है। उन्होंने हनुमान चालीसा और आर्यभट्ट के उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे प्राचीन भारतीय संत और वैज्ञानिक प्रकृति के रहस्यों को समझने में सक्षम थे। ज्ञान और धर्म की ताकत: जब संतों ने विज्ञान को चुनौती द
संतों के ज्ञान का महत्व
यह धारणा कि साधु-संत पढ़ाई-लिखाई से दूर रहते हैं, गलत है। डॉ. गिरी जैसे संत बताते हैं कि संत बनने के लिए गहन अध्ययन और त्याग की आवश्यकता होती है। उन्होंने खुद धर्म और विज्ञान पर शोध कर यह सिद्ध किया है कि आध्यात्मिकता और शिक्षा के बीच गहरा संबंध है। ज्ञान और धर्म की ताकत: जब संतों ने विज्ञान को चुनौती दी