सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत लोक सेवकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की कोई अनिवार्यता नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी लोक सेवक को एफआईआर से पहले प्रारंभिक जांच की मांग करने का अधिकार नहीं है। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम: लोक सेवकों के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं – सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट का तर्क:
✔️ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं।
✔️ यह जांच एजेंसी के विवेक पर निर्भर करेगा कि मामले में जांच की जरूरत है या नहीं।
✔️ प्रारंभिक जांच का उद्देश्य केवल यह तय करना है कि अपराध संज्ञेय है या नहीं, न कि सूचना की सत्यता की पुष्टि करना।
कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला पलटा
कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में दर्ज FIR को रद्द कर दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे, ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि लोकायुक्त पुलिस द्वारा दर्ज की गई FIR वैध है।
क्या है पूरा मामला?
➡️ कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने एक लोक सेवक पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(बी), 13(2) और 12 के तहत मामला दर्ज किया था।
➡️ हाईकोर्ट ने इस FIR को निरस्त कर दिया, जिसे कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
➡️ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है तो FIR दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच आवश्यक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
✔️ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।
✔️ यदि सूचना से संज्ञेय अपराध स्पष्ट होता है, तो पुलिस सीधे FIR दर्ज कर सकती है।
✔️ भ्रष्टाचार के मामलों में प्रारंभिक जांच की जरूरत हर केस की परिस्थितियों पर निर्भर करेगी।
क्या है इस फैसले का प्रभाव?
✅ अब भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में लोक सेवकों के खिलाफ सीधे FIR दर्ज की जा सकेगी।
✅ आरोपी लोक सेवक प्रारंभिक जांच का दावा नहीं कर सकेंगे।
✅ यह फैसला भ्रष्टाचार के मामलों में तेज़ और प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।