चरागाह भूमि पर निजी खेती नहीं! हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 24 साल पुराने कब्जे की दलील खारिज

चरागाह भूमि पर निजी खेती नहीं! हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 24 साल पुराने कब्जे की दलील खारिज, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि सामुदायिक उपयोग के लिए आरक्षित सरकारी चरागाह भूमि को किसी भी व्यक्ति को निजी खेती के लिए लीज पर नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने इस संबंध में दायर एक याचिका को खारिज करते हुए राजस्व अधिकारियों के फैसले को सही ठहराया है।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला बेमेतरा जिले के धानगांव का है। यहाँ के निवासी बनवाली दास ने लगभग 0.94 हेक्टेयर सरकारी भूमि को खेती के लिए पट्टे (लीज) पर देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि वह वर्ष 1998 से इस जमीन पर काबिज है और खेती कर रहा है। साथ ही, उसके पास अपनी आजीविका के लिए कोई दूसरी कृषि भूमि नहीं है। इसी आधार पर उसने प्रशासन से जमीन को अपने नाम पर लीज पर देने का अनुरोध किया था।हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 24 साल पुराने कब्जे की दलील खारिज
कलेक्टर से लेकर राजस्व मंडल तक मिली निराशा
याचिकाकर्ता ने सबसे पहले बेमेतरा कलेक्टर के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था। कलेक्टर ने वर्ष 2014 में यह पाते हुए आवेदन को अस्वीकार कर दिया कि उक्त भूमि चरागाह के लिए आरक्षित है। इस फैसले से असंतुष्ट होकर बनवाली दास ने दुर्ग के अपील आयुक्त और फिर रायपुर स्थित राजस्व मंडल के समक्ष पुनरीक्षण याचिका दायर की। लेकिन दोनों ही उच्च अधिकारियों ने कलेक्टर के आदेश को सही ठहराया और उसकी मांग को खारिज कर दिया।हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 24 साल पुराने कब्जे की दलील खारिज
हाईकोर्ट ने क्यों कहा ‘ना’?
निचली अदालतों से राहत न मिलने पर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडेय की एकलपीठ में हुई। हाईकोर्ट ने सभी दस्तावेजों और तर्कों की जांच के बाद स्पष्ट किया:
विवादित भूमि सरकारी संपत्ति है।
राजस्व रिकॉर्ड में इसे स्पष्ट रूप से “चरागाह” (पशुओं के चरने की जगह) के रूप में दर्ज किया गया है।
सार्वजनिक उपयोग के लिए आरक्षित भूमि को किसी एक व्यक्ति के निजी लाभ के लिए नहीं दिया जा सकता।
इस आधार पर, कोर्ट ने कहा कि कलेक्टर, अपील आयुक्त और राजस्व मंडल द्वारा दिए गए फैसले तथ्यात्मक रूप से सही हैं और उनमें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने याचिका को निराधार मानते हुए खारिज कर दिया।हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 24 साल पुराने कब्जे की दलील खारिज









