राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब, जांच पर लीपापोती का आरोप

राजनांदगांव: राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब, जांच पर लीपापोती का आरोप, राजनांदगांव के एक सरकारी गोदाम से 93 लाख रुपये से अधिक के उच्च गुणवत्ता वाले तेंदूपत्ते के रहस्यमय ढंग से गायब होने के मामले की जांच रिपोर्ट पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि जांच में लीपापोती की गई है और रसूखदार व्यक्तियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। वन विभाग और पुलिस दोनों की भूमिका संदेह के घेरे में है।
बगैर टीपी कैसे गायब हुए 93 लाख के तेंदूपत्ते?
शहर के जीई रोड स्थित गोदाम से दो साल पहले 2669 बोरे अच्छी क्वालिटी के तेंदूपत्ते गायब कर दिए गए थे। चौंकाने वाली बात यह है कि गायब किए गए पत्तों की जगह बोरों में कचरा भर दिया गया, जिससे सरकार को करोड़ों का चूना लगा। वन विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट में 93.5 लाख रुपये की गड़बड़ी की पुष्टि की है और इसके आधार पर तेंदूपत्ता ठेकेदार सहित संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज की गई है।राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब
हालांकि, जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि गोदाम से यह भारी मात्रा में तेंदूपत्ता बिना ट्रांजिट पास (टीपी) के कई ट्रकों के माध्यम से आखिर कहां पहुंचाया गया। सूत्रों का कहना है कि जांच रिपोर्ट में इस महत्वपूर्ण पहलू का उल्लेख न करना, कुछ ठेकेदारों और अधिकारियों को बचाने की सोची-समझी साजिश प्रतीत होता है।राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब
पुलिस की भूमिका भी संदेह के घेरे में
पुलिस ने भी अभी तक इस बात की जांच शुरू नहीं की है कि फर्जीवाड़ा कर गायब किया गया यह तेंदूपत्ता बिना जीएसटी बिल और वन विभाग के परमिट के आखिर कहां डंप किया गया है। यदि इस पूरे मामले की गहनता से जांच की जाए तो कई बड़े ठेकेदार और प्रभावशाली लोग भी गिरफ्त में आ सकते हैं। तेंदूपत्ता एक राष्ट्रीयकृत वनोपज है, और इसका परिवहन बिना उचित बिल और परमिट के नहीं किया जा सकता। ऐसे में, बिना टीपी के इतने बड़े पैमाने पर तेंदूपत्ते का गायब होना, वन विभाग के बैरियर और चेकपोस्ट पर हुई मिलीभगत की ओर इशारा करता है।राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब
जांच रिपोर्ट पर उठते गंभीर सवाल
सूत्रों के अनुसार, जांच रिपोर्ट में यह भी उल्लेख नहीं है कि 93.5 लाख रुपये के तेंदूपत्ते को कब और किस तरीके से गायब किया गया। यह भी कहा जा रहा है कि वन विभाग ने कुछ ठेकेदारों के बिलों के आधार पर टीपी जारी कर दिए थे, जिसके बाद अच्छी क्वालिटी के पत्तों को दूसरे राज्यों में भेज दिया गया। “पत्ता किसी का, बिल किसी और का” की कहावत इस मामले में चरितार्थ होती दिख रही है, जहां कुछ रसूखदारों ने मिलीभगत से बड़े पैमाने पर धांधली को अंजाम दिया है।राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब
राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला केवल पैसों की हेराफेरी का मामला नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी का भी उदाहरण है। इस पूरे प्रकरण में उच्चस्तरीय जांच की आवश्यकता है ताकि दोषियों को बेनकाब किया जा सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके। निष्पक्ष जांच ही न्याय की दिशा में पहला कदम होगा।राजनांदगांव तेंदूपत्ता घोटाला: 93 लाख के पत्ते गायब








