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सर…. पक्की सड़क तो बनवा दीजिये! विगत 35 सालो से सड़क की मांग करते आ रहे छिंदपहरी गाँव की जनता, श्रमदान से बनाते आ रहे है कच्ची सड़क, बार बार बिगड़ती है…दोबारा बनाते है
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छिंदपहरी गाँव के ग्रामीणों ने निडर छत्तीसगढ़ टीम को सुनाई अपनी दुखभरी दास्तान
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मीडिया के माध्यम से शासन- प्रशासन, जनप्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षण कराते हुए ग्रामीणों ने की सड़क निर्माण की मांग
दबंगों और नेताओं के लिए सुविधाएं, आम ग्रामीणों के लिए कठिनाइयाँ
कोरबा/पाली : मूलभूत सुविधाओं के विस्तार में संपर्क मार्ग की बात हो तो दबंगों- नेताओं के द्वार तक पक्की सड़कें बन जाती हैं, लेकिन आम ग्रामीणों के लिए यह सुविधा प्राप्त होना टेढ़ी खीर के बराबर है। ऐसी ही धारणा इन दिनों छिंदपहरी गांव के लोगों में बन चुकी है, जो विगत 35 वर्षों से हर साल श्रमदान कर कच्ची सड़क बनाते आ रहे हैं। यहां के ग्रामीण अधिकारियों और नेताओं से कई बार गुहार लगा चुके हैं, यहां तक कि सोते- जागते पक्की सड़क की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन उन्हें ये आज तक नसीब नहीं हुआ है।
छिंदपहरी गांव की स्थिति
जिले के पाली ब्लाक अंतर्गत दूरस्थ एवं बीहड़ पहाड़ी वाले वनांचल ग्राम पंचायत सपलवा, जहां के आश्रित ग्राम छिंदपहरी में बसने वाले करीब 50 घरों के परिवार तक पहुंचने के लिए 5 किलोमीटर का सड़क नहीं है। कच्ची पगडंडी नुमा रास्ता बना हुआ है जिसे इस गांव के ग्रामीण विगत 35 वर्षों से हर साल सुधारते आ रहे हैं। छिंदपहरी के ग्रामीणों ने अधिकारी हों या राजनेता सभी से पक्के रास्ते के लिए कई बार फरियाद लगा चुके हैं लेकिन अभी तक उनकी सुनवाई नहीं हुई है। हाल ये है कि बरसात के दिनों में यहां के निवासियों का कच्चे मार्ग पर चलना दूभर हो जाता है। क्योंकि बारिश के मौसम में पहाड़ और वर्षा के पानी के बहाव में कच्ची सड़क बह जाती है और पत्थर व कीचड़ हो जाने से आवाजाही बेहद जटिल हो जाती है। अगर कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो और भी दिक्कतें बढ़ जाती हैं।
इमरजेंसी सुविधाओं की कमी
छिंदपहरी के लोगों का दुर्भाग्य ही कहा जाए कि प्रदेश में सबसे अधिक राजस्व प्रदान करने वाले और विकास में अग्रणी कोरबा जिले के ये निवासी हैं। ग्राम सपलवा मुख्यमार्ग से 5 किलोमीटर भीतर दूरी पर बसे इस गांव तक सड़क नहीं होने से गांव का विकास रुका हुआ है। बरसात में आवागमन लगभग ठप हो जाता है। किसी बीमार व्यक्ति के इलाज या गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए अस्पताल ले जाना भी मुश्किल होता है। सड़क की वजह से ही इमरजेंसी वाहन 108 एंबुलेंस, जननी एक्सप्रेस या डायल 112 जैसी सुविधाओं का यहां के ग्रामीणों को लाभ भी नहीं मिल पाता है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव से मुख्यमार्ग तक पहुँचने के 2 रास्ते हैं, एक जंगली और दूसरा कच्चा रास्ता। जंगली रास्ते भालू सहित अन्य जानवरों से प्रभावित हैं। जिसके कारण लोग जंगल के रास्ते आने-जाने से बचते हैं, वहीं दूसरा कच्चा रास्ता गर्मियों व सर्दियों में तो लोग किसी तरह आवागमन कर लेते हैं, लेकिन बारिश के दिनों में सड़क दयनीय हो जाती है और जिसमें बड़े-बड़े गड्ढे, पत्थर उभर आते हैं तथा आवागमन कठिनाइयों से भरा होता है।
शिक्षा और जीवन की कठिनाइयाँ
गांव में केवल 5वीं तक स्कूल है, आगे की पढ़ाई के लिए बच्चे जब गांव से निकलते हैं तो स्कूल पहुंचने से पहले उन्हें 5 किलोमीटर के कच्चे मार्ग पर संघर्ष करना पड़ता है। बीपीएल कार्डधारी भी परेशानियां उठाकर राशन लेने जाते हैं। बीमार व्यक्ति या गर्भवती महिला को चारपाई पर लिटा कर मुख्य मार्ग तक ले जाना पड़ता है, वहां से किसी वाहन के माध्यम से अस्पताल पहुंचते हैं। गंभीर स्थिति में तो मरीज की जान पर भी बन आती है। यह हालात स्वजनों के लिए बेहद दुखदायी व शारीरिक कष्ट बढ़ाने वाला होता है।
35 वर्षों का श्रमदान
विडंबना यह कि हर वर्ष बिगड़ते 5 किलोमीटर के कच्चे मार्ग को ग्रामीण 35 सालों से श्रमदान के तहत बनाते आ रहे हैं। हालांकि चुनाव दर चुनाव वोट लेने के लिए इस गांव में पहुँचने वाले जनप्रतिनिधि हर बार ग्रामीणों की इस मांग पर वादा करके जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद पक्की सड़क निर्माण के लिए कोई प्रयास नहीं किये जाते। छिंदपहरी निवासी ग्रामीणों की मांगों को शासन-प्रशासन तथा जनप्रतिनिधियों द्वारा लगातार अनसुना किये जाने को लेकर उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही उनके गांव में आते हैं। जिनके पास उन्हें देने के लिए सिवाय झूठे आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं है। वहीं प्रशासन का रवैया भी नजर अंदाज है। ऐसे में यहां की कच्ची सड़क 21वीं सदी के विकास संबंधी दावों को मुंह चिढ़ाते नजर आ रही है।
ग्रामीणों की अपील
ग्रामीणों ने मीडिया के माध्यम से अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और शासन का ध्यान आकृष्ट करवाते हुए अति शीघ्र सड़क निर्माण की मांग उठाई है। ताकि उनकी परेशानी दूर हो और गांव के विकास की बातें वे भी कह सकें।
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