ज्ञानदाता तत्वदर्शी संत रामपाल जी महराज को कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं बदनाम मानव मोक्ष के पूर्ण सत्य ज्ञान से आज भी कोसो दूर है : – दुष्यंत दास स्टेट क्वाडिनेटर
बालोद:- तत्वदर्शी जगतगुरू संत रामपाल जी भगवान ने बताया कि सत्य क्या है तत्वदर्शी गुरु की कृपा से इसकी पूर्ण रूप से अनुभूति होती है और ऐसा होता है की सत्य में सद्गुरु अपने बिछुड़े शिष्य को पुनः जोड़कर अपनी अनुभूति प्रदान कर जीवन में सतलोक प्राप्ति का मार्ग दिखाया हैं! जगतगुरु की पूर्ण प्राप्ति हुए बिना न तो आत्मज्ञान होता है न ही सार शब्द का बोध ही होता है! परमात्मा का देश अमरलोक है! सद्गुरु गुरु विद्या उसे प्रदान करते हैं जो उनके आलावा किसी और पर आश्रित नहीं रहता हैं
वह केवल सद्गुरु पर ही विश्वास करता है!अगर मुझे मोक्ष की चाह नहीं होती तो जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल महाराज जी का सत्य ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती और सत्य की भूख नहीं होती तो यह तय था की मुझे सद्गुरु रामपाल महाराज जी नहीं मिले होते। और आज मैं कबीर मार्ग से जुड़ा हू? मुझे वर्तमान गुरु संत रामपाल महराज जी के अनमोल सत्संग का लाभ मिल रहा है और संत दर्शन के बाद कबीर पंथ को जानने की जिज्ञासा हुईं ? सत साहेब से जुड़ने का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ!भगत की ऐसी अवस्था दुर्लभ होती है! इसी क्रम में भगत को सद्गुरु का पूर्ण बोध के साथ – साथ वह अपनी निज शुद्ध अवस्था के बोध से भी गुजर जाता है! इस तरह का वर्णन किताबों में वर्णित नहीं है और इसमें बहुत सारी बातें गुप्त भी हैं! क्योंकि सत साहेब से जुड़े बिना अध्यात्म का परिचय नहीं होता जिज्ञासुपन से मिला शिक्षा, यही सद्गुरु प्रीति एवं रीति है!यह दिल और आत्मा का मामला है! गंगा और समुन्द्र की गहराई को नापना खेल नहीं है और प्रेम तो समुन्द्र से भी गहरा होता है! जो समुन्द्र समस्त संसार को डूबा सकता है, वही समुन्द्र तेल की एक बून्द को नहीं डूबा पाता वह उसके जल के ऊपर ही तैरती है! ठीक इसी प्रकार से सद्गुरु भक्त माया रूपी समुन्द्र के ऊपर या साथ रहे वह भक्ति के कारण तेल की तरह ऊपर ही ऊपर तैरता रहता है एवं वह संसार सागर में नहीं डूबता और न फंसता है!
मनुष्य जन्म अनमोल है! इस अनमोल तन में आत्मा रहती है और उस आत्मा को सद्गुरु अपना तत्व ज्ञान साधक को देता है! यह सुरति पल – पल प्रवाहित होती रही है और इसकी खोज प्रारम्भिक क्रम में साधक खुद करता है और उसके उदगम केंद्र की ओर मुड़ जाता है, यह तब होता है जब जिज्ञासु विशेष रूप से सतसंग के लिए लालायित एवं उत्साहित रहता है तो उसके उपदिष्ट केंद्र पर सद्गुरु उसे देखने की क्षमता प्रदान कर उसे ऊर्ध्व गति में ले जाकर स्थित करते हैं जब साधक धीरे – धीरे इसमें निपुण होता चला जाता है तो उसकी साधना में तो रूचि बढ़ती ही जाती है और वह विशेष रूप से सद्गुरु प्रभु का कृपा पात्र बन, सद्गुरु का उपासक बन जाता है और जन्म मरण की चिन्ता छोड़ अंततः सद्गुरु कृपा से साधना की विशेष अवस्था में चला जाता है और सद्गुरु उसे प्रकृति से छुड़ाकर चेतन लोक में प्रवृष्ट करा अपना आगे का विशेष पथ प्रदान करते हैं!