
छत्तीसगढ़ में अजब-गजब फरमान: सरकारी डॉक्टरों से कहा- “ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो”
ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो, छत्तीसगढ़ के सरकारी सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को जब अपनी कम सैलरी की शिकायत लेकर सरकार के पास गए, तो उन्हें ऐसा जवाब मिला जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। शासन ने दो टूक कह दिया है कि अगर उन्हें संविदा (कॉन्ट्रैक्ट) पर काम कर रहे डॉक्टरों के बराबर ज्यादा वेतन चाहिए, तो वे अपनी स्थायी (रेगुलर) नौकरी से इस्तीफा देकर संविदा पर ज्वॉइन कर लें। शासन के इस ‘उल्टे’ और तर्कहीन पत्र ने डॉक्टरों को हैरान-परेशान कर दिया है।
वेतन विसंगति की जड़: जब रेगुलर से ज्यादा कमाने लगे संविदा डॉक्टर
यह पूरा मामला नेहरू मेडिकल कॉलेज से जुड़े एडवांस्ड कार्डियक इंस्टीट्यूट (ACI) और डीकेएस सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का है। यहां एक ही पद पर काम कर रहे रेगुलर डॉक्टरों को संविदा पर रखे गए डॉक्टरों से हर महीने सवा लाख रुपये तक कम वेतन मिल रहा है।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो
संविदा डॉक्टर: इन्हें हर महीने 2 से 3 लाख रुपये तक वेतन मिल रहा है।
रेगुलर डॉक्टर: इन्हें वर्तमान में महज 85 हजार से 1.68 लाख रुपये मासिक वेतन मिल रहा है।
यह वेतन विसंगति पिछले तीन सालों से बनी हुई है और रेगुलर डॉक्टर लगातार इसे दूर करने की मांग कर रहे हैं।
शासन का ‘तर्कहीन’ पत्र: “वेतन बढ़ाना है या संविदाकरण, स्पष्ट करें”
डॉक्टरों की मांग पर चिकित्सा शिक्षा विभाग को भेजे गए एक पत्र में शासन ने बेहद अजीब रुख अपनाया है। पत्र में लिखा गया है कि यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि डॉक्टर वेतन बढ़ाना चाहते हैं या ‘संविदाकरण’ चाहते हैं। इसी पत्र में यह सुझाव दिया गया है कि अगर उन्हें ज्यादा वेतन चाहिए तो वे इस्तीफा देकर संविदा नियुक्ति ले सकते हैं। इस जवाब ने डॉक्टरों को भौंचक्का कर दिया है।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो
एक ‘गलत’ जानकारी ने उलझाया पूरा मामला: किसने भेजी शासन को झूठी सैलरी रिपोर्ट?
इस पूरे कंफ्यूजन की जड़ में चिकित्सा शिक्षा विभाग (CME) कार्यालय द्वारा भेजी गई एक गलत जानकारी है। पिछले साल सीएमई कार्यालय ने शासन को एक पत्र लिखकर रेगुलर डॉक्टरों का वेतन बढ़ा-चढ़ाकर बता दिया था।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो
उदाहरण के लिए, असिस्टेंट प्रोफेसर का वेतन शासन को 2.29 लाख रुपए बताया गया, जबकि असल में उन्हें सिर्फ 85 हजार रुपए मिलते हैं—यानी लगभग डेढ़ लाख रुपए का भारी अंतर। इसी तरह प्रोफेसर का वेतन 2.91 लाख बताया गया, जबकि उन्हें वास्तव में 1.68 लाख ही मिलते हैं।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो
हालांकि बाद में तत्कालीन सीएमई ने यह गलती स्वीकार भी की, लेकिन इसी गलत जानकारी के चलते वेतन वृद्धि की फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल पर घूम रही है और कोई ठोस फैसला नहीं हो पा रहा है।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो
न अलग कैडर, न बढ़ा वेतन: सालों से अधूरी हैं मांगें
सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर लंबे समय से मध्य प्रदेश की तर्ज पर एक अलग कैडर बनाने और वेतन बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। एक तरफ निजी अस्पतालों में इन्हीं सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को 4 से 7 लाख रुपये, और सीनियर डॉक्टरों को 10 लाख रुपये महीने तक का वेतन मिलता है, वहीं सरकारी डॉक्टर अपनी जायज मांगों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस bureaucratic उलझन और सरकार के अजीबोगरीब जवाब ने उनके भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।ज्यादा सैलरी चाहिए तो पक्की नौकरी छोड़ो, ठेके पर काम करो









