लोकपाल का बड़ा फैसला
लोकपाल ने एक ऐतिहासिक आदेश में स्पष्ट किया है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी लोकपाल अधिनियम, 2013 की धारा 14 के अंतर्गत आते हैं। इसका अर्थ है कि अब हाईकोर्ट के जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायतों पर लोकपाल सुनवाई कर सकता है। हालांकि, लोकपाल ने इस आदेश और संबंधित शिकायतों को भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) को विचारार्थ भेज दिया है। हाईकोर्ट जज पर भ्रष्टाचार मामला: लोकपाल के ऐतिहासिक आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान
लोकपाल के इस आदेश को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामले पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है। इस मामले की सुनवाई के लिए जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अभय एस. ओका की तीन सदस्यीय विशेष पीठ गठित की गई है। हाईकोर्ट जज पर भ्रष्टाचार मामला: लोकपाल के ऐतिहासिक आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
क्या है पूरा मामला?
लोकपाल को दो शिकायतें मिली थीं, जिनमें एक उच्च न्यायालय के मौजूदा अतिरिक्त न्यायाधीश पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने एक प्राइवेट कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए एक अन्य जज को प्रभावित करने का प्रयास किया। इन आरोपों के चलते लोकपाल ने यह स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के जज लोकपाल अधिनियम के दायरे में आते हैं। हाईकोर्ट जज पर भ्रष्टाचार मामला: लोकपाल के ऐतिहासिक आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
लोकपाल की बड़ी टिप्पणी
लोकपाल की न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा:
“उच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोकपाल अधिनियम, 2013 की धारा 14 के अंतर्गत लोकसेवक की परिभाषा में आते हैं। यह कानून जजों को इससे बाहर नहीं रखता, इसलिए इन पर भ्रष्टाचार के मामलों की जांच हो सकती है।”
हालांकि, लोकपाल ने यह भी कहा कि इस मामले में आरोपों की सत्यता पर अभी कोई टिप्पणी नहीं की जा रही है। हाईकोर्ट जज पर भ्रष्टाचार मामला: लोकपाल के ऐतिहासिक आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वत: संज्ञान
सीजेआई की अनुमति के बिना नहीं होगी एफआईआर
लोकपाल ने सुप्रीम कोर्ट के के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ मामले के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी मामला दर्ज करने से पहले CJI की अनुमति आवश्यक होगी। इसी आधार पर लोकपाल ने मामले की पूरी रिपोर्ट प्रधान न्यायाधीश को विचारार्थ भेज दी है।
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