धर्म-अध्यात्म

यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल, हलषष्ठी पर दोगुनी कीमत देकर भी खरीदने की होड़, जानें क्या है खासियत

रायपुर। यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल, हलषष्ठी पर दोगुनी कीमत देकर भी खरीदने की होड़, जानें क्या है खासियत, छत्तीसगढ़ के बाजारों में इन दिनों हलषष्ठी (खमरछठ) पर्व की रौनक छाई हुई है, और इस रौनक के साथ ही एक खास तरह के चावल की मांग आसमान छू रही है। यह चावल है ‘पसहर चावल’, जिसे खरीदने के लिए महिलाएं सामान्य से दोगुनी कीमत भी चुका रही हैं। आखिर इस चावल में ऐसा क्या खास है और क्यों यह केवल त्योहारों पर ही इतना महंगा बिकता है?

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क्या है पसहर चावल और क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण?

पसहर चावल कोई आम धान नहीं है जिसे खेतों में हल चलाकर उगाया जाता हो। यह धान की एक विशेष किस्म है जो बिना किसी जुताई के तालाब, पोखर, नालों और खेतों की मेड़ों के किनारे प्राकृतिक रूप से उगती है। पानी के पास उगने के कारण इसके दानों में एक खास नमी, मुलायमपन और मिट्टी की सौंधी महक होती है।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसका “बिना हल जोते” उगना है, जो इसे धार्मिक दृष्टि से पवित्र बनाता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में महिलाएं हलषष्ठी व्रत में इसे प्रसाद और फलाहार के रूप में इस्तेमाल करती हैं।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

हलषष्ठी पर्व और पसहर चावल का अटूट संबंध

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भादो महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है, जिन्हें हलषष्ठी भी कहते हैं। चूंकि ‘हल’ भगवान बलराम का शस्त्र है, इसलिए इस दिन महिलाएं उनके सम्मान में हल से जुते हुए खेतों में उगाए गए अनाज का सेवन नहीं करती हैं। वे व्रत के दौरान पसहर चावल जैसे प्राकृतिक रूप से उगे अनाज और छह प्रकार की भाजियों का भोग लगाकर पूजा करती हैं और इसी चावल को खाकर अपना व्रत खोलती हैं।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

बाजारों में मांग चरम पर, कीमत दोगुनी

हर साल की तरह इस साल भी हलषष्ठी पर्व से सप्ताह भर पहले ही बाजारों में पसहर चावल की बिक्री शुरू हो गई है। रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, जांजगीर-चांपा और महासमुंद जैसे जिलों के हाट-बाजारों में इसे खरीदने के लिए महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी है।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

इसकी सीमित पैदावार और त्योहार पर अत्यधिक मांग के कारण इसकी कीमत सामान्य सुगंधित चावलों जैसे एचएमटी या जवाफूल से भी दोगुनी या तिगुनी हो जाती है। फिलहाल बाजार में पसहर चावल 100 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम तक बिक रहा है। कई महिलाएं पूजा के दिन कीमत और बढ़ने या चावल खत्म हो जाने के डर से इसे पहले ही खरीद रही हैं। चावल के साथ-साथ पूजा में लगने वाली अन्य सामग्री जैसे महुआ, दोना, लाई और विभिन्न प्रकार की भाजियां भी ऊंचे दामों पर बिक रही हैं।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

कचहरी चौक पर पसहर चावल बेच रही महिलाओं ने बताया कि वे इसे तालाबों और नालों के किनारे से इकट्ठा करती हैं, फिर साफ-सफाई कर बाजार में बेचने लाती हैं। भले ही इसका स्वाद अन्य महंगे चावलों जैसा न हो, लेकिन आस्था और परंपरा के आगे इसकी कीमत मायने नहीं रखती।यह है छत्तीसगढ़ का ‘पवित्र’ चावल

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