छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’, काम करने पर है सख्त पाबंदी!
जानिए ‘सवनाही तिहार’ की रहस्यमयी मान्यताएं और सदियों पुरानी पूजा विधि, जो गांव को बुरी शक्तियों और बीमारियों से बचाती है।
छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’, भारत अपनी विविध और अनूठी परंपराओं का देश है, और छत्तीसगढ़ की धरती पर ऐसी ही एक सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है। कुरुद अंचल में मनाया जाने वाला ‘सवनाही तिहार’ सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, विश्वास और सामुदायिक सुरक्षा का प्रतीक है। इस त्योहार के दौरान सावन महीने के हर रविवार को पूरा गांव एक साथ छुट्टी मनाता है, और किसी भी तरह के काम-काज पर पूरी तरह से पाबंदी होती है।
क्या है सवनाही तिहार और क्यों है यह खास?
‘सवनाही तिहार’ छत्तीसगढ़ के कृषि-संस्कृति से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो आषाढ़ के आखिरी या सावन के पहले रविवार से शुरू होता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, बारिश का मौसम अपने साथ केवल हरियाली ही नहीं, बल्कि बीमारियां, संक्रमण और नकारात्मक ऊर्जा (टोना-टोटका) का खतरा भी लेकर आता है। इन्हीं अदृश्य शक्तियों से पूरे गांव, उसके निवासियों और मवेशियों की रक्षा के लिए यह त्योहार मनाया जाता है।छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’
पूरे सावन हर रविवार को ‘सामूहिक अवकाश’
इस त्योहार की सबसे अनूठी बात है ‘सामूहिक अवकाश’ की परंपरा। त्योहार शुरू होने से एक दिन पहले, यानी शनिवार को गांव का कोटवार मुनादी (घोषणा) करके सभी को सूचित कर देता है। इसके बाद सावन के हर रविवार को गांव में कोई भी व्यक्ति काम नहीं करता।छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’
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खेतों में हल नहीं चलाया जाता।
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बैलगाड़ी का इस्तेमाल वर्जित होता है।
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गांव से बाहर काम करने वाले लोगों को भी इस दिन छुट्टी लेनी पड़ती है।
यह एक अनिवार्य अवकाश होता है, जिसका पालन पूरा गांव मिलकर करता है। यह परंपरा 5 से 7 रविवार तक चलती है।
शनिवार की रात होती है रहस्यमयी पूजा
इस त्योहार की आत्मा इसकी रहस्यमयी पूजा विधि में बसती है, जो शनिवार की रात को गांव के बैगा (पुजारी) द्वारा की जाती है।छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’
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तैयारी: गांव के प्रमुख किसानों के साथ मिलकर बैगा रात भर देवी-देवताओं की आराधना करता है।
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पूजा स्थल: सुबह होते ही बैगा और राउत (पशुपालक समुदाय) मवेशियों के साथ गांव की सीमा (जिसे ‘सियार’ कहते हैं) पर जाते हैं।
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विशेष भेंट: वहां ‘सवनाही देवी’ को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। इसमें नारियल, सिंदूर, नींबू, श्रृंगार सामग्री, और रंग-बिरंगे झंडों के साथ काली मुर्गी की भेंट चढ़ाई जाती है।
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नीम की गाड़ी: नीम की लकड़ी से एक छोटी गाड़ी बनाकर उसे सजाया जाता है और पूजा में इस्तेमाल किया जाता है।
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सबसे अहम नियम: पूजा के बाद काली मुर्गी को गांव की सीमा के पार बुरी शक्तियों के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद बैगा और अन्य लोग बिना पीछे मुड़े गांव लौट आते हैं। मान्यता है कि पीछे मुड़कर देखने से सवनाही देवी नाराज हो जाती हैं और पूजा खंडित हो जाती है।
घरों पर बनता है गोबर का ‘सुरक्षा कवच’
रविवार के दिन गांव के लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से मनुष्याकृति बनाते हैं। इसके बाद गोबर से ही एक रेखा खींचकर पूरे घर को चारों ओर से “बांध” दिया जाता है। माना जाता है कि यह गोबर का ‘सुरक्षा कवच’ घर के अंदर किसी भी बुरी आत्मा या नकारात्मक शक्ति को प्रवेश करने से रोकता है।छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’
भले ही आज के आधुनिक युग में ये परंपराएं कुछ लोगों को आदिम लगें, लेकिन यह गांव के लोगों को मानसिक शांति और सुरक्षा का एहसास देती है। इसी विश्वास के सहारे वे साल भर निडर होकर अपना कृषि कार्य करते हैं।छत्तीसगढ़ की अनोखी परंपरा: इस गांव में सावन के हर रविवार को होती है ‘तालाबंदी’