रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना? राजस्थान के इस मंदिर से जुड़ा है गहरा रहस्य

रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना? राजस्थान के इस मंदिर से जुड़ा है गहरा रहस्य, हम सबने रामायण में रावण की सोने की लंका के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस स्वर्ण नगरी को बनाने के लिए सोना कहां से आया था? पौराणिक मान्यताओं और प्राचीन जैन ग्रंथों के अनुसार, इस सवाल का जवाब राजस्थान के अलवर शहर से जुड़ा है, जहां आज भी एक अति प्राचीन मंदिर इस कहानी का साक्षी है।
क्या है सोने की लंका का ‘अलवर कनेक्शन’?
प्राचीन जैन ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि जब रावण ने सोने की लंका बनाने का निश्चय किया, तो उसे अपार धन की आवश्यकता थी। कहा जाता है कि इस कामना को पूरा करने के लिए रावण ने वर्तमान अलवर के पास स्थित एक स्थान पर घोर तपस्या की थी। उसने यहां 52 जिनालय (जैन मंदिर) बनवाकर जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की विधिवत आराधना की।रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना?
मान्यता है कि उसकी कठोर भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पारस पत्थर का वरदान दिया। इसी पारस पत्थर के स्पर्श से रावण ने लोहे को सोने में बदलकर अपनी भव्य स्वर्ण लंका का निर्माण किया था।रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना?
रावण की तपोस्थली से शहर में आया मंदिर
जिस स्थान पर रावण ने तपस्या की थी, वह आज “रावण देवरा” गांव के नाम से जाना जाता है, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है। यहीं से भगवान पार्श्वनाथ की वह चमत्कारी और अति प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई थी, जिसकी पूजा स्वयं रावण ने की थी। बाद में इस प्रतिमा को अलवर शहर के परकोटे के भीतर “बीरबल का मोहल्ला” में लाकर एक भव्य मंदिर में स्थापित किया गया। आज यह मंदिर “रावण पार्श्वनाथ मंदिर” के नाम से प्रसिद्ध है।रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना?
क्या कहते हैं ऐतिहासिक प्रमाण?
यह मंदिर श्वेतांबर जैन समाज की आस्था का एक विशाल केंद्र है। मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण यहां मिले शिलालेखों से भी मिलता है, जिन पर संवत 1211 और संवत 1645 की तिथियां अंकित हैं। इन शिलालेखों से मंदिर की प्रतिष्ठा और इतिहास के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। यह किवदंती इतनी प्रसिद्ध थी कि अलवर के पूर्व महाराजा जयसिंह ने भी इस कथा के आधार पर रावण देवरा में सोने की खोज करवाई थी, हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली।रावण को सोने की लंका के लिए कहां से मिला था सोना?
आज है आस्था का बड़ा केंद्र
यह मंदिर देश के 108 रावण पार्श्वनाथ मंदिरों में से एक है। यहां भगवान पार्श्वनाथ की मुख्य प्रतिमा के साथ-साथ आदेश्वरनाथ, अजीतनाथ, विमलनाथ, महावीर भगवान और चंद्रप्रभु सहित अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। साल भर यहां देश-विदेश से जैन संत और श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं और इस स्थान को एक सिद्ध तीर्थक्षेत्र मानते हैं।









