बीजापुर

जहां एंबुलेंस ने मानी हार, वहां ट्रैक्टर बना ‘संजीवनी’: CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

जहां एंबुलेंस ने मानी हार, वहां ट्रैक्टर बना ‘संजीवनी’: CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान, छत्तीसगढ़ के बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर स्थित, कभी बंदूकों की गूंज से दहलने वाला कर्रेगुट्टा इलाका आज इंसानियत की एक अनूठी मिसाल पेश कर रहा है। यहां सीआरपीएफ की 151वीं बटालियन के जवानों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए एक ‘जुगाड़ एंबुलेंस’ से एक बीमार आदिवासी की जान बचाकर साबित कर दिया है कि सेवा और संवेदना ही उनका सबसे बड़ा हथियार है।

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जब जिंदगी और मौत के बीच फंसा था ग्रामीण, बारिश और कीचड़ बने थे दुश्मन

यह घटना कर्रेगुट्टा के पटेलपारा गांव की है, जहां 48 वर्षीय कोवासी हड़मा की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उन्हें हाइपोटेंशन (निम्न रक्तचाप) और हाइपोग्लाइसीमिया (निम्न रक्त शर्करा) की गंभीर शिकायत थी, जिससे उनकी हालत लगातार नाजुक होती जा रही थी। लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने गांव के कच्चे रास्तों को दलदल में बदल दिया था। ऐसे में गांव तक किसी एम्बुलेंस या सामान्य वाहन का पहुंचना नामुमकिन था।CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

न हार मानी, न थके कदम: जवानों ने ट्रैक्टर को बना दिया चलता-फिरता अस्पताल

जब हर तरफ से उम्मीदें टूट रही थीं, तब सीआरपीएफ के जवान देवदूत बनकर सामने आए। उन्होंने समय गंवाए बिना एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को ही एंबुलेंस बनाने का फैसला किया।CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

  • बनाई छत: तिरपाल और अपनी वर्दियों का इस्तेमाल कर ट्रॉली के ऊपर एक अस्थायी छत बनाई, ताकि मरीज बारिश से बच सके।

  • बनाया स्ट्रेचर: गांव में मौजूद एक खाट को स्ट्रेचर का रूप दिया और मरीज को उस पर लिटाया।

  • शुरू हुआ सफर: इस ‘जुगाड़ एंबुलेंस’ पर मरीज को लेकर जवान 15 किलोमीटर के बेहद दुर्गम और दलदली रास्ते को पार करते हुए पामेड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) के लिए निकल पड़े।

समय पर मिला इलाज और बची हुई एक जिंदगी

पामेड़ सीएचसी के प्रभारी डॉ. बी. पी. भंज ने बताया कि जब मरीज को लाया गया, तो उसकी हालत बेहद नाजुक थी। अगर थोड़ी और देर हो जाती, तो कुछ भी हो सकता था। जवानों की बदौलत मरीज समय पर अस्पताल पहुंच गया, जहां उसे तुरंत ग्लूकोज और जरूरी दवाएं दी गईं। समय पर मिले इलाज से उसकी जान बच गई और शाम तक उसे अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई।CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

आंखों में आंसू, जुबां पर शुक्रिया: ‘जवान न होते तो मैं न बचता’

इलाज के बाद स्वस्थ हुए कोवासी हड़मा जवानों के इस प्रयास को देखकर भावुक हो गए। उन्होंने नम आंखों से कहा, “अगर ये जवान भाई समय पर नहीं आते, तो आज मेरी जान नहीं बचती। मैं इनका कर्ज कभी नहीं चुका पाऊंगा।” गांव वालों ने भी सीआरपीएफ के इस मानवीय चेहरे की जमकर सराहना की और कहा कि कर्रेगुट्टा की पहचान अब सिर्फ संघर्ष नहीं, बल्कि इंसानियत भी बन गई है।CRPF जवानों ने दलदल चीरकर बचाई आदिवासी की जान

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