हसदेव जंगल पर मंडराता खतरा
हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़ का पर्यावरणीय और सांस्कृतिक धरोहर, एक बार फिर चर्चा में है। अडानी ग्रुप को तीन कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं, जिनसे कोयला निकालने के लिए 12 लाख पेड़ों की बलि चढ़ाई जाएगी। इस कदम से न केवल जंगल का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदाय की आजीविका और पर्यावरण संतुलन पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला
क्या है कोयला खनन का पूरा मामला?
राजस्थान बिजली उत्पादन के लिए कोयला उपलब्ध कराने के लिए हसदेव अरण्य में तीन कोल ब्लॉक आवंटित किए गए हैं। इनमें से एक खदान, पीईकेबी (परसा ईस्ट केते बासन), पहले से ही चालू है और राजस्थान की सालाना 21 मिलियन टन कोयले की आवश्यकता पूरी कर रही है।
- पीईकेबी कोल ब्लॉक में 310 मिलियन टन कोयला उपलब्ध है, जो अगले 15 वर्षों तक राजस्थान की बिजली आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।
- इसके बावजूद, अडानी ग्रुप को अन्य दो खदानों में खनन के लिए अनुमति दी गई है, जिससे 12 लाख पेड़ काटे जाएंगे। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला
आदिवासियों और पर्यावरण पर प्रभाव
हसदेव बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय ग्रामीण इस खनन के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन कर रहे हैं।
- आदिवासियों का कहना है कि ग्रामसभा ने कभी सहमति नहीं दी, लेकिन सरकार उनकी जमीन और जंगल छीन रही है।
- आदिवासी, किसान और पर्यावरण प्रेमियों का कहना है कि वे अपने जंगल और जमीन को मरते दम तक बचाएंगे। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और याचिका
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, छत्तीसगढ़ सरकार और अडानी ग्रुप को नोटिस जारी किया है।
- याचिका में हसदेव अरण्य को खनन मुक्त करने और संरक्षित क्षेत्र घोषित करने की मांग की गई है।
- कोल प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार, चालू खदान राजस्थान की जरूरतें पूरी कर रही है, इसलिए नई खदानों की जरूरत नहीं है। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला
हसदेव बचाने की मुहिम
इस विवाद को लेकर हसदेव बचाओ संघर्ष समिति ने हरिहरपुर में एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें आदिवासी और पर्यावरण प्रेमी शामिल हुए।
- ग्रामीणों का कहना है कि सरकार दमन की कितनी भी कोशिश कर ले, वे जंगल और जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला
क्या है समाधान?
- चालू खदान के अलावा नई खदानों की अनुमति रद्द की जाए।
- जंगलों और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं बनें।
- आदिवासी अधिकारों का सम्मान हो। हसदेव अरण्य: अडानी ग्रुप और 12 लाख पेड़ों की बलि का मामला