हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि देश के हाईकोर्ट को बिना सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार किए, ‘देरी और कमी’ के आधार पर रिट याचिकाओं को यांत्रिक रूप से खारिज नहीं करना चाहिए। यह टिप्पणी 1986 में एक डकैत से मुकाबला कर जान बचाने वाले 83 वर्षीय पूर्व कांस्टेबल को 5 लाख रुपये का मानदेय दिए जाने के मामले में आई है। हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
याचिका खारिज होने पर सुप्रीम कोर्ट का दुख
इस मामले में याचिकाकर्ता को पुलिस अधीक्षक, बांदा ने वीरता पुरस्कार के लिए सिफारिश की थी। लेकिन जब सिफारिश पर कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने देरी का हवाला देकर याचिका खारिज कर दी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने “गहरी अफसोस की भावना” के साथ कहा कि हाईकोर्ट के पास एक गलती सुधारने का मौका था, लेकिन वह इसे समझने में विफल रहा।
सुप्रीम कोर्ट की सलाह:
- मौलिक अधिकारों का सम्मान आवश्यक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ता अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हैं, तो हाईकोर्ट का दायित्व है कि वह इन मामलों पर गंभीरता से विचार करे। - देरी के कारण को समझना महत्वपूर्ण
याचिकाकर्ता ने अधिकारियों को बार-बार अनुरोध किए थे, लेकिन इन कारणों को हाईकोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इसे गलत ठहराया। - देरी के बावजूद राहत जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर तथ्यों में गंभीर विवाद नहीं है और याचिकाकर्ता को राहत देना न्यायसंगत है, तो देरी को आधार बनाकर राहत से इनकार करना अनुचित होगा। हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
कानूनी स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शन
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब कोई मामला अस्पष्टीकृत देरी से जुड़ा हो, तो हाईकोर्ट को निम्नलिखित कारकों पर विचार करना चाहिए:
- क्या तीसरे पक्ष को अधिकार मिल चुका है?
- क्या राहत देने से सार्वजनिक असुविधा होगी?
- क्या देरी के कारण रिकॉर्ड पेश करने में परेशानी हो सकती है?
अंतिम फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि देरी के बावजूद याचिकाकर्ता को न्याय मिलना चाहिए। हाईकोर्ट को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के साथ काम करना चाहिए। हाईकोर्ट को मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका निभानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट









