छत्तीसगढ़ l छत्तीसगढ़ की संस्कृति अद्वितीय है, जहां प्रकृति और अध्यात्मिकता का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। इसी सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण पर्व है “भोजली”, जिसे खासतौर पर बहु-बेटियों का पर्व माना जाता है। यह त्योहार प्रकृति, अध्यात्म और मित्रता की अनूठी मिसाल पेश करता है।
भोजली पर्व: बहु-बेटियों का अनमोल त्यौहार
भोजली पर्व छत्तीसगढ़ की महिलाओं और कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान, वे एक बांस की टोकनी में मिट्टी भरकर धान, जौ और उड़द बोती हैं। नागपंचमी के दिन अखाड़े की मिट्टी लाकर इसे बोया जाता था, लेकिन अब समय के साथ यह परंपरा बदल गई है और महिलाएं इसे पंचमी से लेकर अष्टमी तक अपनी सुविधा के अनुसार बोने लगी हैं। यह टोकरा घर के अंदर छांव में रखा जाता है और इसमें हल्दी पानी का छिड़काव किया जाता है। भोजली का पौधा उगने पर महिलाएं इसकी पूजा करती हैं और खास भोजली गीत गाकर सेवा करती हैं।
भोजली गीत: संस्कृति का जीता जागता उदाहरण
भोजली पर्व में गाए जाने वाले गीत छत्तीसगढ़ की संस्कृति को जीवंत बनाए रखते हैं। गीतों में भोजली के पौधे की वृद्धि और उसकी सुंदरता का वर्णन किया जाता है। इन गीतों में गन्ने की तेज बढ़त के मुकाबले भोजली की धीमी वृद्धि को लेकर मजाकिया लहजे में गीत गाए जाते हैं, जो इस पर्व की विशेषता है।
भोजली का विसर्जन: प्रकृति के प्रति सम्मान
राखी के दिन या इसके अगले दिन, भोजली का विसर्जन किया जाता है। इसे किसी पवित्र जलाशय में ठंडा करते हैं, जिससे इसकी मिट्टी बह जाती है और भोजली का सुनहरा रंग उभरकर आता है। यह पीले रंग का हो जाता है, जिसे सोने से लदी भोजली कहा जाता है। इसके पत्तों पर भूरे रंग के दाने पड़ जाते हैं, जिन्हें चंदन का छिटा माना जाता है। इस तरह, भोजली का मानवीकरण कर उसकी पूजा की जाती है, जिससे सबके मन में प्यार और सम्मान का भाव उत्पन्न होता है।
मित्रता का प्रतीक: भोजली का सामाजिक महत्व
भोजली पर्व छत्तीसगढ़ में मित्रता का प्रतीक है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं, भोजली भेंट करते हैं और एक-दूसरे को सम्मान देते हैं। यह मित्रता तीन पीढ़ियों तक कायम रहती है, और इसे सगे संबंधों से भी बड़ा माना जाता है। लोग एक-दूसरे को “भोजली” कहकर संबोधित करते हैं और इस दिन को मित्रता दिवस के रूप में मनाते हैं।