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क्या है चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल? जानिए विस्तार से…

NCG News desk Mizoram:-

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चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल: पैसे की कमी के कारण आम हैसियत वाला व्यक्ति गंभीरतापूर्वक चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और आम वोटर की भागीदारी बढ़ाने के लिए अक्सर सुझाव दिए जाते रहे हैं। एक सुझाव यह भी आया कि चुनावों का पूरा खर्च सरकारी स्तर पर उठाया जाना चाहिए। यह भी कहा जाता है कि चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए समाज को खुद आगे आना चाहिए।

समाज का हस्तक्षेप

लेकिन ये विचार हकीकत नहीं बन पाते। फिर भी एक राज्य ऐसा है, जहां के समाज ने ही चुनाव सुधार को लागू करके दिखा दिया है। उत्तर-पूर्वी राज्य मिजोरम में समाज ने चुनाव को लेकर ऐसी पारदर्शी और मजबूत व्यवस्था बना दी है, जिसका उल्लंघन करने का साहस न तो कोई राजनीतिक दल कर पाता है और न कोई प्रत्याशी। मिजोरम के राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के लिए चुनाव आयोग के नियमों के बजाय ‘मिजो पीपल फोरम’ के बनाए नियमों का पालन करते हैं। (चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

न पोस्टर, न लाउडस्पीकर

मिजोरम के चुनाव प्रचार में देश के दूसरे हिस्सों की तरह ना तो पोस्टरबाजी होती है, ना ही पैसे खर्च होते हैं। लाउडस्पीकर का प्रयोग वैसे तो चुनाव आयोग के कड़े नियमों की वजह से देशभर में सीमित हो चुका है, लेकिन मिजोरम में इसका इस्तेमाल बिल्कुल नहीं होता। वहां चुनाव प्रचार की निगरानी ‘मिजो पीपल फोरम’ करता है।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

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बीस-बीस मिनट का वक्त

प्रत्याशियों को अपना पक्ष रखने के लिए बीस-बीस मिनट का वक्त दिया जाता है। इस दौरान वोटर भी वहां जुटते हैं और वे मुद्दों पर प्रत्याशियों से सवाल-जवाब करते हैं। जिन्होंने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव की प्रेसिडेंशल डिबेट देखी-सुनी है, उन्हें पता है कि किस तरह हर प्रत्याशी अपनी राय रखता है और अपने मुद्दों पर समर्थन जुटाने की कोशिश करता है। मिजोरम के प्रत्याशी भी कुछ वैसा ही करते हैं।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

क्या है चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल? जानिए विस्तार से...
Getty image

2006 से शुरुआत

दरअसल, साल 2006 के मिजो विधानसभा चुनावों में काफी गड़बड़ियां हुई थीं। इससे आहत मिजो यंग असोसिएशन ने चुनावों को कदाचार मुक्त बनाने का बीड़ा उठाया। उसी की कोशिशों से यहां के सात स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर ‘मिजो पीपल फोरम’ नाम से साझा मंच बनाया और राज्य में चुनावों को कदाचार मुक्त बनाने की तैयारी की। मिजोरम की करीब 85% आबादी ईसाई है। जाहिर है, इस फोरम को भी ईसाई संगठनों का समर्थन है।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

कोई बड़ी रैली नहीं

यह फोरम इतना प्रभावशाली है कि उसके बनाए नियमों का अगर कोई प्रत्याशी उल्लंघन करता है तो उसे मतदाताओं का गुस्सा झेलना पड़ता है। मिजोरम के चुनावों में साल 2006 के बाद से बड़ी-बड़ी रैलियां नहीं हो रहीं। शोर-शराबे का सवाल ही नहीं उठता। वोटरों की खरीद-फरोख्त या निजी लालच की कोई सोच भी नहीं सकता।

दूसरे राज्यों के लिए मिसाल

डेढ़ दशक पहले तक मिजोरम भी अशांत रहा। सवाल है कि जब अशांत रहे किसी एक राज्य का समाज अपने दम पर चुनाव सुधार लागू कर सकता है तो देश के दूसरे इलाकों में समाज ऐसी कोशिश क्यों नहीं कर सकता? सवाल यह भी है कि मिजोरम के इस चुनाव मॉडल को चुनाव आयोग प्रचारित क्यों नहीं करता?(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

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चुनाव सुधार के सुझाव

देश में चुनाव सुधार के लिए संथानम समिति, दिनेश गोस्वामी समिति और एनएन वोहरा समिति ने समय-समय पर सुझाव दिए। लेकिन ज्यादातर सुधार सुप्रीम कोर्ट के फैसले और चुनाव आयोग के बनाए नियमों के हिसाब से हुए। जिन नेताओं को इन चुनावों के जरिए संवैधानिक पद हासिल होते हैं, उनके हाथों संचालित होने वाली विधायिका चुनाव सुधारों की दिशा में उल्लेखनीय कदम उठाने से हिचकती रही है। ऐसे में समाज से ही उम्मीद की जा सकती है।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

सर्वसम्मति पर जोर

मिजोरम के समाज को इस लिहाज से उदाहरण के रूप में पेश किया जा सकता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में सर्वसम्मति पर भी जोर रहा है। भारत की पारंपरिक पंचायती व्यवस्था में आज की तरह चुनाव नहीं होते थे, पंचों का चुनाव सर्वसम्मत तरीके से होता था। उसी तर्ज पर मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी कुछ इलाके ऐसे हैं, जो अपने प्रतिनिधियों का चुनाव सर्वसम्मति से करते हैं। इस समय अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। वहां की साठ में से दस सीटों पर निर्विरोध और सर्वसम्मत निर्वाचन हो चुके हैं।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

चुनाव आयोग करे पहल

उत्तर-पूर्व के राज्यों को मुख्यधारा से दूर माना जाता है। लेकिन यहां का समाज मुख्यधारा के समाजों की तुलना में कहीं ज्यादा अनुकरणीय उदाहरण पेश कर रहा है। बेहतर होता कि मिजोरम और अरुणाचल के मॉडल को चुनाव आयोग प्रोत्साहित करता और पूरे देश का नागरिक समाज इस दिशा में सोचना शुरू करता। लोकतंत्र को सच्चे अर्थों में ऐसे ही उपायों से लोकतंत्र बनाया जा सकता है।(चुनाव सुधार का मिजोरम मॉडल)

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