दिल्ली

“युवाओं को क्यों घेर रहा स्ट्रोक? खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

डॉ. अमित बत्रा की चेतावनी: 30-40 की उम्र में बढ़ रहे मामले, मेटाबॉलिक जोखिम और नशे की लत प्रमुख कारण

नई दिल्ली: एक समय था जब स्ट्रोक (पक्षाघात) को आमतौर पर बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन यह धारणा अब तेजी से बदल रही है. पिछले कुछ सालों में 30 से 40 साल की उम्र के युवाओं में स्ट्रोक के मामलों में चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज की गई है. मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज में न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. अमित बत्रा का कहना है कि यह बदलाव केवल बेहतर जांच सुविधाओं के कारण नहीं, बल्कि हमारी बदलती लाइफस्टाइल, बढ़ते तनाव और सेहत से जुड़ी अनदेखियों का सीधा परिणाम है.

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कम उम्र में मेटाबॉलिक जोखिम की शुरुआत:

डॉ. बत्रा के अनुसार, आजकल हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं पहले से कहीं कम उम्र में युवाओं को अपनी चपेट में ले रही हैं. लंबे समय तक बैठकर काम करना, जंक फूड का अत्यधिक सेवन, नींद की कमी और व्यायाम से दूरी इस स्थिति को और गंभीर बना रही है. युवा अक्सर इन शुरुआती स्वास्थ्य संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं, जब तक कि कोई बड़ी घटना, जैसे दिल का दौरा या स्ट्रोक न हो जाए.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

तनाव और नींद की कमी: बड़ा खलनायक:

तेज रफ्तार वाली जीवनशैली, देर रात तक काम करना, स्क्रीन पर लगातार समय बिताना और अत्यधिक मानसिक दबाव ने युवाओं की नींद और मानसिक संतुलन दोनों को बुरी तरह प्रभावित किया है. लगातार तनाव से शरीर में कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है, जो रक्त वाहिकाओं (ब्लड वेसल्स) को नुकसान पहुंचाते हैं. पर्याप्त नींद न लेना इस खतरे को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे दिमाग में रक्त प्रवाह असंतुलित हो सकता है और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

निकोटिन, ड्रग्स और एनर्जी ड्रिंक्स का घातक असर:

धूम्रपान और वेपिंग जैसी आदतें रक्त वाहिकाओं की दीवारों को कमजोर करती हैं और खून में थक्के बनने का खतरा बढ़ाती हैं. वहीं, कोकीन और एम्फ़ेटामीन जैसे नशीले पदार्थ रक्तचाप में अचानक और अत्यधिक वृद्धि करके ब्रेन हेमरेज (मस्तिष्क रक्तस्राव) का कारण बन सकते हैं. इसके अलावा, एनर्जी ड्रिंक्स और अत्यधिक शराब का सेवन भी शरीर की नसों पर अनावश्यक दबाव डालता है, जिससे स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

हार्मोनल और अन्य मेडिकल कारण:

युवा महिलाओं में हार्मोनल बदलाव, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन या आईवीएफ उपचार के दौरान उपयोग होने वाले हार्मोन भी स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकते हैं, खासकर यदि वे धूम्रपान करती हैं. कुछ ऑटोइम्यून बीमारियां जैसे लूपस या क्लॉटिंग डिसऑर्डर भी अब युवा मरीजों में अधिक देखे जा रहे हैं. हाल के वर्षों में कोविड-19 संक्रमण के बाद खून में थक्के बनने और शरीर में सूजन से जुड़े मामलों में भी स्ट्रोक का खतरा बढ़ा है.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

बेहतर जांच, लेकिन चिंताजनक सच्चाई:

आजकल एमआरआई और सीटी एंजियोग्राफी जैसी आधुनिक तकनीकों से स्ट्रोक की पहचान पहले से कहीं तेजी से, कई बार लक्षणों के शुरू होने के 30 मिनट के भीतर ही, हो जाती है. हालांकि, चिंताजनक बात यह है कि वास्तविक स्ट्रोक के मामलों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है, जिससे युवाओं में विकलांगता और उनके कामकाजी जीवन में हानि जैसी गंभीर समस्याएं सामने आ रही हैं.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

रोकथाम ही सबसे बड़ा बचाव:

डॉ. बत्रा जोर देकर कहते हैं कि स्ट्रोक से बचाव की शुरुआत समय पर जांच और अपने शरीर की देखभाल से होती है. ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल की नियमित जांच अब केवल बुजुर्गों के लिए नहीं, बल्कि युवाओं के लिए भी उतनी ही आवश्यक है. संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, धूम्रपान और शराब से दूरी, पर्याप्त नींद और तनाव पर नियंत्रण – ये सभी छोटे कदम हैं जो भविष्य में एक बड़े स्वास्थ्य खतरे से बचा सकते हैं. साथ ही, समाज में यह जागरूकता फैलाना भी अत्यंत आवश्यक है कि स्ट्रोक केवल उम्रदराज लोगों की बीमारी नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ी को भी अपनी चपेट में ले रहा है. अपनी लाइफस्टाइल में सुधार लाकर ही इस बढ़ती चुनौती का सामना किया जा सकता है.खराब लाइफस्टाइल और तनाव बन रहा ‘खतरे की घंटी'”

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