जातिगत जनगणना पर मोदी सरकार की चाल? पहलगाम हमले की आलोचना से ध्यान हटाने की कोशिश!
पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा, उठे सवाल
नई दिल्ली – केंद्र सरकार ने हाल ही में जातिगत जनगणना की घोषणा कर सभी को चौंका दिया। यह फैसला ऐसे समय में आया जब देश पहलगाम आतंकी हमले की त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहा था, जिसमें 26 निर्दोष लोगों की जान गई।पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने इस घोषणा के जरिए जनता का ध्यान कश्मीर में सुरक्षा विफलता से हटाने की कोशिश की है।पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
पहलगामहमला और सरकार की घेराबंदी
22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद सरकार को विपक्ष और आम नागरिकों से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। लोग पूछने लगे – “5 साल से कश्मीर पर नियंत्रण के बावजूद सरकार टूरिस्टों की सुरक्षा क्यों नहीं कर पाई?”
इस सवाल से घिरती सरकार ने अचानक जातिगत जनगणना का ऐलान कर दिया, जिससे मीडिया का फोकस पूरी तरह बदल गया।
भाजपा और जातिगत जनगणना : यू-टर्न या रणनीति?
विपक्ष ने दावा किया कि यह उनकी विचारधारा की जीत है, जबकि भाजपा समर्थकों ने कहा – “कांग्रेस का मुद्दा छीन लिया गया।”पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
हालांकि, यह वही भाजपा है जिसने कभी जातिगत जनगणना की मांग को “हिंदू समाज को बांटने की साजिश” बताया था।
यह वही सरकार है जिसके समर्थकों ने हमले के बाद पोस्टर जारी किए – “धर्म पूछा गया, जाति नहीं।” लेकिन अब सरकार खुद जाति पूछने को तैयार है।पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
भाजपा की दोहरी नीति और विचारधारा का टकराव
भाजपा और आरएसएस हमेशा से जाति को लेकर द्वैध रवैया अपनाते आए हैं:
- पब्लिकली जाति मिटाने की बात करते हैं।
- लेकिन राजनीतिक रणनीति पूरी तरह जातीय समीकरणों पर आधारित होती है।
मोदी खुद को पिछड़ी जाति का प्रतिनिधि बताकर सहानुभूति बटोरते रहे हैं।
जातिगत गणना, चुनावी गोलबंदी और सामाजिक समीकरण साधने का एक हथियार बनती जा रही है।
जातिगत जनगणना और लोकतंत्र का भविष्य
कुछ लोग आशंका जताते हैं कि इससे हमारी पहचान जाति में जड़ हो जाएगी।
लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पहले से ही जाति आधारित है।
जनगणना केवल यथार्थ को आँकड़ों में दर्ज करेगी, उसे बनाएगी नहीं।पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
जाति विमर्श से डर क्यों?
जातिगत जनगणना की घोषणा के दिन ही एनसीईआरटी की किताब में जाति को एक “ग़ैर-दमनकारी व्यवस्था” बताया गया।
सेंसर बोर्ड ने हाल ही में ‘फुले‘ फिल्म से जातिसूचक प्रसंग हटाने का आदेश दिया।
यानी एक तरफ सरकार जाति की सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहती, दूसरी ओर राजनीतिक लाभ के लिए जाति पर आधारित निर्णय लेती है।पहलगाम आतंकी हमले के बीच आई जातिगत जनगणना की घोषणा
निष्कर्ष: क्या बाबा साहब का सपना स्थगित हो गया?
डॉ. आंबेडकर ने जिस जातिविहीन समाज की कल्पना की थी, वह अब भी अधूरी है।
जातिगत जनगणना से यह सपना दूर नहीं होता, लेकिन यह सवाल जरूर खड़ा होता है –
क्या हम अब मनुष्य बनने की आकांक्षा को स्थगित कर चुके हैं?
क्या राजनीति जातिगत जोड़-तोड़ तक सीमित रह जाएगी?