
अनुकंपा नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बहू वेतन से सास को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुकंपा नियुक्ति से मिलने वाले वेतन से बहू को अपनी सास के भरण-पोषण के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति मृतक कर्मचारी की संपत्ति नहीं है, बल्कि यह परिवार को तात्कालिक आर्थिक सहायता प्रदान करने का एक जरिया है।अनुकंपा नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
क्या है पूरा मामला: सास-बहू और गुजारा भत्ता

यह मामला बिलासपुर हाईकोर्ट में पहुंचा, जहां एसईसीएल हसदेव के एक कर्मचारी भगवान दास की मृत्यु (वर्ष 2000) के बाद उनके बड़े बेटे ओंकार को अनुकंपा नियुक्ति मिली थी। दुर्भाग्यवश, कुछ वर्षों बाद ओंकार का भी निधन हो गया। इसके उपरांत, ओंकार की पत्नी (बहू) को केंद्रीय अस्पताल मनेंद्रगढ़ में अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की गई।अनुकंपा नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
निचली अदालत का आदेश
ओंकार की 68 वर्षीय मां (सास) ने मनेंद्रगढ़ परिवार न्यायालय में अपनी बहू के खिलाफ याचिका दायर कर प्रतिमाह 20,000 रुपये भरण-पोषण की मांग की थी। सास ने दलील दी कि वह बीमार रहती हैं और उन्हें केवल 800 रुपये पेंशन मिलती है, जिससे उनका गुजारा मुश्किल है। परिवार न्यायालय ने सास के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बहू को अपनी सास को हर महीने 10,000 रुपये गुजारा-भत्ता देने का आदेश दिया था।अनुकंपा नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
बहू ने हाईकोर्ट में दी चुनौती, रखे ये तर्क
इस फैसले को बहू ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी। बहू ने अपनी याचिका में निम्नलिखित तर्क दिए:
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उसे प्रतिमाह केवल 26,000 रुपये वेतन मिलता है, जिससे वह अपनी और अपनी 6 वर्षीय बेटी की देखभाल करती है।
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सास को 800 रुपये नहीं, बल्कि 3,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है।
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सास को पति की मृत्यु के बाद बीमा के रूप में सात लाख रुपये मिले थे।
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खेती से भी उन्हें सालाना लगभग एक लाख रुपये की आय होती है।
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सास की देखभाल उनका दूसरा बेटा उमेश करता है, जो एक निजी कंपनी में कार्यरत है और प्रतिमाह 50,000 रुपये कमाता है।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और उसकी व्याख्या

मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने की। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया:
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अनुकंपा नियुक्ति संपत्ति नहीं: अनुकंपा नियुक्ति मृतक कर्मचारी की संपत्ति (estate) नहीं मानी जा सकती। यह नियुक्ति मृतक की व्यक्तिगत सेवा के एवज में और परिवार को तात्कालिक आर्थिक संकट से उबारने के लिए दी जाती है।
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वेतन से भरण-पोषण की बाध्यता नहीं: चूंकि अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं है, इसलिए इससे मिलने वाले वेतन को आधार बनाकर बहू से सास के लिए भरण-पोषण की मांग नहीं की जा सकती।
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निचली अदालत का फैसला रद्द: कोर्ट ने कहा, “अनुकंपा नियुक्ति मृतक की संपत्ति नहीं होती। बहू को उसके वेतन से भरण-पोषण देने को बाध्य नहीं किया जा सकता।” इसी के साथ डिवीजन बेंच ने मनेंद्रगढ़ परिवार न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और बहू को सास का भरण-पोषण देने की बाध्यता से मुक्त कर दिया।
यह फैसला अनुकंपा नियुक्ति और पारिवारिक भरण-पोषण से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण नजीर पेश करता है, जो भविष्य के ऐसे मामलों में मार्गदर्शन का काम करेगा।अनुकंपा नियुक्ति पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला









