छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट: किसानों की बढ़ी चिंता, सोसाइटियों से नदारद, खुले बाजार में महंगी

छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट: किसानों की बढ़ी चिंता, सोसाइटियों से नदारद, खुले बाजार में महंगी
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छत्तीसगढ़ में खरीफ सीजन की दस्तक के साथ ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरा गई हैं। धान और अन्य फसलों के लिए अत्यावश्यक डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) खाद की उपलब्धता इस बार एक बड़ी चुनौती बनती दिख रही है। सहकारी समितियों (सोसाइटियों) में डीएपी की भारी किल्लत है, जबकि खुले बाजार में यह ऊंचे दामों पर बिक रही है, जिससे किसानों की लागत बढ़ने की आशंका है।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
अंतर्राष्ट्रीय संकट का सीधा असर: क्यों है डीएपी की कमी?
मार्कफेड और सहकारिता क्षेत्र के विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इस खरीफ सीजन में सोसाइटियों के माध्यम से डीएपी खाद की पर्याप्त आपूर्ति मुश्किल नजर आ रही है। इसका मुख्य कारण अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ हैं:छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
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रूस-यूक्रेन युद्ध: इस युद्ध ने वैश्विक उर्वरक आपूर्ति श्रृंखला को बुरी तरह प्रभावित किया है।
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लाल सागर तनाव: इजराइल और अन्य संघर्षों के कारण लाल सागर क्षेत्र में समुद्री परिवहन बाधित हुआ है, जिससे कई देशों से खाद का आयात प्रभावित हो रहा है।
इन कारणों से डीएपी की सप्लाई बाधित है और फिलहाल इस संकट के जल्द टलने के आसार भी कम दिख रहे हैं।
सोसाइटियों में विकल्प, खुले बाजार में मनमानी कीमत
चिंताजनक बात यह है कि जो डीएपी खाद सोसाइटियों में किसानों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है, वही खुले बाजार में आसानी से मिल रही है, लेकिन इसकी कीमत आसमान छू रही है। वर्तमान में खुले बाजार में डीएपी लगभग 1750 रुपये प्रति बोरी बिक रही है, और विशेषज्ञों का मानना है कि मांग बढ़ने पर (पीक टाइम में) यह कीमत और भी बढ़ सकती है।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
इस स्थिति को देखते हुए कृषि विभाग की सलाह पर मार्कफेड किसानों को डीएपी के स्थान पर अन्य वैकल्पिक उर्वरक, जैसे एनपीके (20:20:16), सोसाइटियों के माध्यम से उपलब्ध करा रहा है। हालांकि सरकार राज्य में उर्वरकों की कमी न होने का दावा कर रही है, लेकिन इसमें डीएपी स्पष्ट रूप से शामिल नहीं है।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
वर्तमान खाद स्टॉक की स्थिति
सहकारिता क्षेत्र में अपेक्स बैंक से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्तमान में सोसाइटियों में विभिन्न प्रकार की लगभग चार लाख टन खाद उपलब्ध कराई गई है। इसमें यूरिया, सुपर फॉस्फेट, डीएपी (सीमित मात्रा), एनपीके, एमओपी (म्यूरेट ऑफ पोटाश) और अन्य उर्वरक शामिल हैं। किसान अब तक लगभग डेढ़ लाख क्विंटल खाद का उठाव कर चुके हैं। रायपुर, गरियाबंद, बलौदाबाजार समेत कई जिलों में खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास जारी हैं।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
मार्कफेड का स्पष्टीकरण
मार्कफेड की प्रबंध निदेशक (एमडी) किरण कौशल ने भी स्वीकारा है कि वर्तमान में डीएपी की उपलब्धता सीमित है। उन्होंने कहा, “डीएपी की उपलब्धता अभी नहीं है। इसी कारण कृषि विभाग के मार्गदर्शन के अनुरूप किसानों को अन्य वैकल्पिक खाद उपलब्ध कराई जा रही है।”
डीएपी के विकल्प क्या हैं?
धान की फसल के लिए प्रति हेक्टेयर लगभग 100-120 किलोग्राम डीएपी की अनुशंसा की जाती है, हालांकि इसका उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना सर्वोत्तम होता है। डीएपी की कमी की स्थिति में किसान निम्नलिखित विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं:छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
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एनपीके (12:32:16): यह डीएपी का एक अच्छा विकल्प है।
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सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP): फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है, जिसके साथ नाइट्रोजन के लिए यूरिया का प्रयोग करना होगा।
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एनपीके (20:20:16): यह भी सोसाइटियों द्वारा किसानों को दिया जा रहा एक प्रमुख विकल्प है।
धान की खेती के लिए डीएपी क्यों है महत्वपूर्ण?
डाई-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) धान की खेती के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण उर्वरक है। इसमें नाइट्रोजन (18%) और फॉस्फोरस (46%) की उच्च मात्रा होती है।
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फॉस्फोरस: यह धान के पौधों की जड़ों को मजबूत बनाता है, जिससे पौधा मिट्टी से पानी और अन्य पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से अवशोषित कर पाता है।
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नाइट्रोजन: पौधों की वानस्पतिक वृद्धि के लिए आवश्यक है।
संतुलित पोषक तत्व मिलने से फसल की पैदावार अच्छी होती है।
किसानों की पीड़ा: जमीनी हकीकत
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दुर्ग जिला: यहां डीएपी की भारी कमी के चलते बारिश होने के बावजूद कई किसान बोआई नहीं कर पाए हैं। पिछले साल की तुलना में इस बार डीएपी भंडारण के लक्ष्य में भारी कटौती की गई है। नगपुरा के किसान पुकेश्वर साहू बताते हैं कि दमोदा, भेडसर, रसमडा सहित आस-पास की सोसाइटियों में डीएपी की किल्लत बनी हुई है। पिछले साल जिले में 14,915 टन डीएपी वितरण का लक्ष्य था, जबकि इस बार मार्कफेड ने मांग घटाकर मात्र 5,267 टन कर दी है, जिसमें से अब तक केवल 3,883 टन का ही वितरण हुआ है। कोढ़िया सोसायटी के उपकेंद्र धनोरा के लिपिक देवलाल साहू के अनुसार, 1000 बोरी डीएपी की मांग भेजी गई थी, लेकिन 20 दिन बाद भी केवल 10% ही आपूर्ति हुई है। किसान केसीसी में खाद और नगदी राशि की एंट्री करा रहे हैं, पर खाद नदारद है।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
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राजनांदगांव जिला: पैलीमेटा, मोहगांव, ठाकुरटोला जैसी सोसाइटियों में डीएपी खाद बिल्कुल नहीं है। मानपुर से पैलीमेटा सोसायटी पहुंचे किसान ईश्वर यादव और मोहगांव के खेलू राम जंघेल ने बताया कि वे कई दिनों से डीएपी के लिए चक्कर लगा रहे हैं। विचारपुर सोसायटी में भी सीमित स्टॉक आया जो कुछ किसानों को ही मिल पाया, अब वहां भी डीएपी नहीं है। किसान मोहन भारती और तीरथ जंघेल ने बताया कि डीएपी खाद की पर्ची नहीं कट रही है।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट
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किसानों को सलाह: बोरई के झबेन्द्र भूषण वैष्णव ने बताया कि सोसायटी प्रबंधक डीएपी उपलब्ध न होने की बात कह रहे हैं और उसकी जगह एनपीके व अन्य खाद मिलाकर छिड़कने की सलाह दे रहे हैं, जबकि किसानों की प्राथमिकता डीएपी है।
छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट खरीफ सीजन में किसानों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय कारणों से उपजी यह कमी किसानों की लागत बढ़ा रही है और उन्हें वैकल्पिक उर्वरकों पर निर्भर रहने को मजबूर कर रही है। सरकार और संबंधित एजेंसियों को इस समस्या का स्थायी समाधान खोजने और किसानों को समय पर उचित मूल्य पर खाद उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि राज्य की कृषि अर्थव्यवस्था प्रभावित न हो।छत्तीसगढ़ में डीएपी खाद का संकट









