Dhan Ki Nilami: छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल, ओपन मार्केट में बिक्री पर ज़ोर
छत्तीसगढ़ सरकार की धान नीलामी योजना एक बार फिर विफल साबित हुई है। इससे पहले की सरकार भी इस योजना को सफल बनाने में नाकाम रही थी, और इस बार भी उचित बोलीदाताओं की अनुपस्थिति के चलते भंडारण में पड़ा धान खराब होने की कगार पर पहुंच गया है।छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल
‘धान 23-24′ स्टॉकबन गया सिरदर्द
सरकार द्वारा धान की नीलामी न हो पाने के कारण पुराना स्टॉक ‘धान 23-24′ के नाम से पहचाना जाने लगा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह वही स्टॉक है जिसे पहले सरगुजा के जंगलों में हाथियों को खिलाने की कोशिश की गई थी, लेकिन हाथियों ने भी इसे खाने से इनकार कर दिया था।छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल
अब इसी धान की मिलिंग प्रक्रिया जारी है, जिसे पहले भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने लेने से इनकार कर दिया था। हालांकि अब नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) इसे स्वीकार कर रहा है।छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल
क्या है आगे का समाधान?
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को 2024-25 के धान का प्रसंस्करण कर उसे ओपन मार्केट में बेचना चाहिए। छत्तीसगढ़ के चावल की मांग न केवल देश के महानगरों में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी लगातार बढ़ रही है।छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल
इससे सरकार को अच्छा दाम मिल सकता है और भारी आर्थिक घाटे से भी बचा जा सकता है।
मिलिंग में भी आई अड़चनें
इस साल कस्टम मिलिंग दरों को लेकर राइस मिलर्स की एक महीने की हड़ताल भी योजना में बाधक बनी। इससे मिलिंग प्रक्रिया में देरी हुई और स्टॉक बढ़ता चला गया।
यदि सरकार समय रहते मिलिंग की प्रक्रिया को गति दे, तो:
- बिजली की खपत बढ़ेगी, जिससे पावर कंपनियों को लाभ मिलेगा,
- सरकार को GST और अन्य करों के रूप में आय होगी,
- और धान उद्योग को नई दिशा मिलेगी।
रणनीति में बदलाव जरूरी
अब यह आवश्यक हो गया है कि सरकार पारंपरिक नीलामी व्यवस्था को छोड़कर डायरेक्ट ओपन मार्केट बिक्री की रणनीति अपनाए। इससे न सिर्फ स्टॉक की बर्बादी रुकेगी, बल्कि किसानों को बेहतर मूल्य, और सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा।छत्तीसगढ़ में धान नीलामी योजना फिर हुई असफल