जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा: स्वास्थ्य कारण, विपक्षी भेदभाव नोटिस और विवादों से भरा कार्यकाल

जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा: स्वास्थ्य कारण, विपक्षी भेदभाव नोटिस और विवादों से भरा कार्यकाल
नई दिल्ली: जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा, 21 जुलाई 2025 (सोमवार) की देर शाम उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपना इस्तीफ़ा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दिया। आधिकारिक स्वीकृति व आगे की संवैधानिक कार्यवाही पर विस्तृत सूचना की प्रतीक्षा है।
Highlights
- स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अचानक इस्तीफ़ा।
- कार्यकाल पूरा होने से पहले पद छोड़ा—अगस्त 2022 में शपथ, लगभग तीन वर्ष से कम सेवा।
- विपक्ष ने राज्यसभा सभापति के रूप में पक्षपातपूर्ण आचरण का आरोप लगाते हुए नोटिस दिया था—ऐतिहासिक/दुर्लभ घटना।
- न्यायपालिका बनाम विधायिका बहस में उनके तीखे बयान चर्चा में रहे; अनुच्छेद 142 पर टिप्पणी सुर्खियों में।
- पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए ममता बनर्जी सरकार से लगातार टकराव।
- लंबा राजनीतिक सफर: जनता दल से शुरुआत, लोकसभा, फिर कांग्रेस, राज्य विधायक, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता, बाद में भाजपा व राष्ट्रीय दायित्व, और अंततः भारत के 14वें उपराष्ट्रपति।
इस्तीफ़े की बड़ी ख़बर: क्या हुआ, कब हुआ?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 (सोमवार) की देर शाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना लिखित इस्तीफ़ा सौंपा। दिनभर वे राज्यसभा में मौजूद रहे और सदन की कार्यवाही का संचालन भी किया, इसलिए शाम को आया उनका निर्णय कई राजनीतिक हलकों के लिए चौंकाने वाला रहा। संवैधानिक प्रोटोकॉल के अनुसार, राष्ट्रपति द्वारा इस्तीफ़ा स्वीकार किए जाने के बाद ही वह प्रभावी माना जाता है; आधिकारिक बयान की प्रतीक्षा की जा रही है।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
स्वास्थ्य कारण: आधिकारिक तर्क या गहरी राजनीति?
धनखड़ ने अपने पत्र में स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया है। भारत के उच्च सार्वजनिक पदों पर बैठे नेताओं द्वारा स्वास्थ्य का उल्लेख करना असामान्य नहीं, परंतु अक्सर यह व्यापक राजनीतिक संदर्भों, दबावों या रणनीतिक निर्णयों से भी जुड़ा होता है। क्या यह वास्तव में स्वास्थ्य आधारित निर्णय है या हालिया राजनीतिक तनावों के चलते लिया गया कदम? इस पर राजनीतिक दलों के बयान आने शेष हैं।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
पूरा कार्यकाल क्यों नहीं? टाइमलाइन एक नज़र में
| चरण | तिथि | प्रमुख घटना |
|---|---|---|
| नामांकन | 2022 | एनडीए ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया। |
| चुनाव | 6 अगस्त 2022 (उदाहरण तिथि; संपादन करें) | विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को पराजित किया। |
| शपथ | अगस्त 2022 | भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण। |
| राज्यसभा सभापति कार्य | 2022-2025 | विपक्ष के साथ कई तीखी बहसें; कार्यवाही प्रबंधन पर विवाद। |
| इस्तीफ़ा | 21 जुलाई 2025 | स्वास्थ्य कारण बताते हुए पद से त्यागपत्र। |
विपक्ष का पक्षपात नोटिस: संवैधानिक इतिहास में एक दुर्लभ पल
धनखड़ का उपराष्ट्रपति कार्यकाल लगातार विवादों में रहा। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि राज्यसभा सभापति के रूप में उनका आचरण पक्षपातपूर्ण रहा और उन्होंने कुछ अवसरों पर विपक्ष की आवाज़ को पर्याप्त महत्व नहीं दिया। इस आरोप को रिकॉर्ड पर लाने के लिए विपक्ष की ओर से एक औपचारिक नोटिस लाया गया—ऐसी पहल बेहद दुर्लभ है और भारतीय संसदीय परंपराओं में विशेष महत्व रखती है।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
नोटिस को उपसभापति हरिवंश ने खारिज कर दिया। प्रतिक्रिया में धनखड़ ने इस पहल को “जंग लगा हुआ चाकू” बताया—यह उनके तल्ख़, सीधी और कभी-कभी उत्तेजक राजनीतिक शैली का उदाहरण माना गया।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी और शक्तियों का पृथक्करण बहस
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका—भारतीय लोकतंत्र की तीनों संवैधानिक शाखाओं के बीच संतुलन पर बहस समय-समय पर उठती रहती है। धनखड़ ने इस बहस में सक्रिय भूमिका निभाई। एक सार्वजनिक संबोधन में उन्होंने कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। पृष्ठभूमि में एक ऐसा मामला था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों को राष्ट्रपति/राज्यपाल की मंज़ूरी के लिए समयसीमा पर टिप्पणी की थी।
इसी संदर्भ में उन्होंने अनुच्छेद 142 को लेकर तीखा रूपक दिया—इसे उन्होंने “लोकतांत्रिक ताक़तों के खिलाफ न्यायपालिका के पास चौबीसों घंटे मौजूद परमाणु मिसाइल” जैसा प्रभावी औज़ार बताया। बयान ने राजनीतिक और विधिक गलियारों में व्यापक प्रतिक्रिया उत्पन्न की: एक धड़ा इसे लोकतांत्रिक संतुलन की आवश्यक चेतावनी मानता है, तो दूसरा धड़ा संवैधानिक संस्थाओं पर अनावश्यक आक्रामकता के रूप में देखता है।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
पश्चिम बंगाल राजभवन बनाम ममता सरकार: लगातार टकराव
उपराष्ट्रपति बनने से पहले जगदीप धनखड़ 2019 में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल नियुक्त किए गए थे। उनका कार्यकाल लगातार सुर्खियों में रहा क्योंकि राज्यपाल भवन और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार के बीच मतभेद सार्वजनिक तौर पर सामने आते रहे। प्रशासनिक फाइलों से लेकर कानून-व्यवस्था व विश्वविद्यालय राजनीति तक, कई मुद्दों पर खुली भिड़ंत देखने को मिली।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
स्थिति इतनी तीखी हुई कि रिपोर्टों के अनुसार ममता बनर्जी ने उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर ब्लॉक कर दिया था—जो राजनीतिक असहमति के डिजिटल दौर की प्रतीकात्मक घटना बन गई।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
धनखड़ का सियासी सफर: गाँव से दिल्ली की सत्ता तक
जगदीप धनखड़ का राजनीतिक और व्यावसायिक सफर बहुपक्षीय रहा है—कृषि पृष्ठभूमि से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति तक का सफर।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
शुरुआती जीवन व शिक्षा
- राजस्थान की ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं।
- कानूनी शिक्षा प्राप्त की और वकालत को पेशे के रूप में अपनाया।
जनता दल से संसद तक
- 1989 के आम चुनाव में जनता दल से झुंझुनू लोकसभा सीट जीती—राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश।
कांग्रेस पारी
- बाद में कांग्रेस में शामिल हुए।
- 1993 से 1998 तक राजस्थान की किशनगढ़ विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया।
वरिष्ठ अधिवक्ता का चरण
- 1998 के बाद सुप्रीम कोर्ट में पूर्णकालिक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में कार्य किया; संवैधानिक वाणिज्यिक मामलों में सक्रिय भूमिका।
भाजपा में वापसी और राष्ट्रीय जिम्मेदारियाँ
- भारतीय जनता पार्टी से जुड़े तथा पार्टी के विधि एवं वैधानिक मामलों के विभाग में राष्ट्रीय संयोजक की भूमिका निभाई।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल (2019)
- केंद्र द्वारा नियुक्त; सक्रिय, मुखर और विवादों से घिरा कार्यकाल।
भारत के 14वें उपराष्ट्रपति (अगस्त 2022)
- एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता; विपक्ष की मार्गरेट अल्वा पर विजय।
- राज्यसभा सभापति के रूप में कई उच्च-प्रोफ़ाइल संसदीय गतिरोधों का सामना।
अगला क्या? उपराष्ट्रपति पद का संभावित अंतरिम प्रबंधन व चुनावी प्रक्रिया
भारतीय संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति या रिक्ति की स्थिति में राज्यसभा के उपसभापति सीमित दायरे में प्रक्रियात्मक सहायता दे सकते हैं, जबकि औपचारिक संवैधानिक प्रावधानों के तहत नया चुनाव निर्धारित समयसीमा में कराया जाता है। आमतौर पर छह माह के भीतर रिक्त संवैधानिक पदों के लिए चुनाव प्रक्रिया पूरी करने का प्रयास किया जाता है, पर अंतिम समय-सारिणी निर्वाचन आयोग और संसद के कैलेंडर पर निर्भर करेगी।जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से दिया इस्तीफ़ा
FAQ: अक्सर पूछे जाने वाले सवालप्र. क्या इस्तीफ़ा स्वीकार हो गया है? प्र. क्या धनखड़ का पूरा कार्यकाल तीन वर्ष भी नहीं रहा? प्र. विपक्ष ने उनके खिलाफ क्या कदम उठाया था? प्र. अनुच्छेद 142 पर उनका विवादित बयान क्या था? प्र. क्या उनका ममता बनर्जी से सार्वजनिक टकराव था? |









