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बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें, आज वहां गूंज रही स्कूल की घंटी

बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें, आज वहां गूंज रही स्कूल की घंटी

बीजापुर: बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें, छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भट्टीगुड़ा इलाके में एक ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिला है। यह वही जगह है जो कभी नक्सलियों का ट्रेनिंग कैंप हुआ करती थी और जहां दिन-रात गोलियों की आवाजें गूंजती थीं। आज उसी धरती पर आजादी के बाद पहली बार स्कूल की घंटी बजी है, और बच्चों की खिलखिलाहट ने पूरे माहौल को उम्मीद से भर दिया है।

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नक्सलगढ़ में शिक्षा की नई सुबह

‘स्कूल फिर चलो अभियान’ के तहत भट्टीगुड़ा में खुला यह स्कूल, इस क्षेत्र के लिए एक नई सुबह लेकर आया है। टिन की छत और लकड़ी की दीवारों से बने एक अस्थायी स्कूल में जब पहली बार घंटी बजी, तो गांव के 65 बच्चों ने शिक्षा की ओर अपना पहला कदम बढ़ाया। इस ऐतिहासिक पल पर जिला प्रशासन ने बच्चों का स्वागत ‘वेलकम किट’ देकर किया। यह क्षण उस इलाके के लिए किसी सपने के सच होने जैसा है, जहां डर और दहशत का साया रहता था।बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें

चुनौतियों को पार कर पहुंची शिक्षा की लौ

बीजापुर जिला मुख्यालय से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित भट्टीगुड़ा तक पहुंचना आज भी एक बड़ी चुनौती है। शिक्षा विभाग के अधिकारी नदी, नाले और कीचड़ से भरे ऊबड़-खाबड़ रास्तों को बाइक से पार करके इस स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे। इस बदलाव ने स्थानीय ग्रामीणों में एक नया उत्साह और विश्वास पैदा किया है। अब यहां बच्चों के हाथ में बंदूक की जगह बस्ता है और आंखों में डर की जगह भविष्य के सपने हैं।बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें

सुरक्षा कैंप बने विकास का आधार

यह परिवर्तन सुरक्षाबलों की मौजूदगी से संभव हो पाया है। यह इलाका जो कभी नक्सलियों के शीर्ष नेताओं का ट्रेनिंग ज़ोन माना जाता था, अब वहां सुरक्षाबलों के 10 से अधिक कैंप स्थापित हो चुके हैं। इसके परिणामस्वरूप नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगी है और विकास कार्यों में तेजी आई है। सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है और तर्रेम से पामेड़ के बीच नियमित बस सेवा भी शुरू हो गई है, जिससे ग्रामीणों का जीवन आसान हो रहा है।बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें

600 से अधिक बच्चों का स्कूल में दाखिला

भट्टीगुड़ा अकेला ऐसा गांव नहीं है, जहां यह बदलाव आया है। जिले में इस तरह के 16 नए स्कूल खोले गए हैं, जिनमें 13 प्राथमिक और 2 माध्यमिक शालाएं शामिल हैं। इन स्कूलों में अब तक 600 से अधिक बच्चों को दाखिला दिया जा चुका है। फिलहाल अधिकांश जगहों पर अस्थायी झोपड़ीनुमा स्कूलों में पढ़ाई शुरू की गई है, और प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि मानसून के बाद पक्के स्कूल भवनों का निर्माण किया जाएगा।बस्तर में बदलाव की बयार: जहां कभी गरजती थीं बंदूकें

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