भारतीय वायु सेना की प्रतीक्षा: लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी, एयर चीफ मार्शल ने क्यों जताई चिंता?

भारतीय वायु सेना की प्रतीक्षा: लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी, एयर चीफ मार्शल ने क्यों जताई चिंता?
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भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित किए जा रहे कई महत्वपूर्ण सैन्य प्रोजेक्ट्स में हो रही देरी ने गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं। विशेष रूप से, बहुप्रतीक्षित तेजस लड़ाकू विमानों की समय पर डिलीवरी न हो पाना वायु सेना की क्षमताओं को लेकर सवाल खड़े करता है। हाल ही में एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह द्वारा सैन्य परियोजनाओं में विलंब पर की गई टिप्पणी ने भारत की स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमताओं और रणनीतिक तैयारियों पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी
विलंबित परियोजनाएं: एक नज़र
एयर चीफ मार्शल ने विशेष रूप से 83 तेजस एमके1ए (Tejas Mk1A) लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में हो रही देरी का उल्लेख किया, जिसकी शुरुआत मार्च 2024 से होनी थी। इसका मुख्य कारण HAL को जनरल इलेक्ट्रिक से इंजनों की आपूर्ति न होना बताया गया है। यह अकेली परियोजना नहीं है जो अपने निर्धारित समय से पीछे चल रही है। सरकार ने भी 2023 में संसद में स्वीकार किया था कि 55 में से 23 रक्षा परियोजनाएं विलंबित हैं। लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी
डीआरडीओ के प्रमुख प्रोजेक्ट्स में देरी:
डीआरडीओ के कई बड़े और महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स वर्षों से अपने निर्धारित समय से पीछे चल रहे हैं, जिनमें कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
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लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA), चरण-II: मूल रूप से इसे 2008 में पूरा होना था, लेकिन यह परियोजना अभी भी लंबित है।
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नेवल LCA (चरण-I): इसकी समय सीमा 2010 थी, जो बढ़कर 2014 हो गई, लेकिन अभी भी पूरी तरह से परिचालित नहीं है।
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कावेरी इंजन: 1996 में शुरू हुई यह परियोजना 2009 तक पूरी होनी थी, परन्तु अभी भी अधूरी है।
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एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) सिस्टम, लॉन्ग रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (LR-SAM), और एयर टू एयर एस्ट्रा मिसाइल: इन सभी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में भी कई वर्षों की देरी हो चुकी है (स्रोत: पीआईबी)।
खर्च बढ़ा, परिणाम अभी भी प्रतीक्षित
आंकड़ों के अनुसार, भारतीय सेना ने 2019 से 2024 के बीच स्वदेशी रक्षा उपकरणों की खरीद पर 96,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 की पहली छमाही में ही यह आंकड़ा 11,265 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसके बावजूद, तेजस एमके1ए की डिलीवरी रुकी हुई है, तेजस एमके2 (Tejas Mk2) का प्रोटोटाइप अभी तक तैयार नहीं हुआ है, और एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं अभी भी डिज़ाइनिंग चरण में ही हैं। लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी
परियोजनाओं में देरी के मुख्य कारण
रक्षा मंत्रालय और डीआरडीओ की विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, इन परियोजनाओं में देरी के कई अंतर्निहित कारण हैं:
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अपर्याप्त बुनियादी ढांचा: देश में उन्नत परीक्षण सुविधाओं और आवश्यक औद्योगिक बुनियादी ढांचे की कमी।
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तकनीकी जटिलताएँ: आधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों की जटिल प्रकृति और विदेशी स्रोतों से महत्वपूर्ण घटकों या प्रौद्योगिकियों की उपलब्धता में आने वाली बाधाएं।
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बदलती उपयोगकर्ता आवश्यकताएँ: समय के साथ सशस्त्र बलों की परिचालन आवश्यकताओं में बदलाव, जिससे परियोजनाओं के डिजाइन और विनिर्देशों में संशोधन करना पड़ता है।
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परीक्षणों में विफलता और लंबी परीक्षण प्रक्रियाएं: विकास के दौरान परीक्षणों में असफलता और उसके बाद सुधार तथा पुनः परीक्षण में लगने वाला लंबा समय।
रणनीतिक तैयारियों पर गंभीर प्रभाव
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि इन विलंबों का सीधा असर न केवल परियोजनाओं की लागत और समय-सीमा पर पड़ता है, बल्कि इससे भारत की समग्र रणनीतिक तैयारियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। सशस्त्र बलों, विशेषकर वायु सेना को समय पर आधुनिक और उन्नत सैन्य साजो-सामान न मिल पाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। यह स्थिति भारत की आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन क्षमता के लक्ष्य को भी चुनौती देती है। लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी
इस दिशा में तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने और परियोजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता तथा जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय सशस्त्र बल भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार रहें। लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी









