छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’, 4000 गाड़ियां सड़कर बनीं करोड़ों का कबाड़, क्यों नहीं हो रही नीलामी?

छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’, 4000 गाड़ियां सड़कर बनीं करोड़ों का कबाड़, क्यों नहीं हो रही नीलामी?
मुख्य बिंदु:
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बालोद जिले के थानों में 4000 से ज्यादा जब्त वाहन सड़ रहे हैं, कई गाड़ियां 2007 से पहले की हैं।
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नीलामी की जटिल प्रक्रिया और अधिकारियों की कथित उदासीनता के कारण सरकारी राजस्व को करोड़ों का नुकसान।
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थाने कबाड़खाने में तब्दील, वाहनों के पार्ट्स चोरी हो रहे और टायर दीमक खा रहे हैं।
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नियमों के मुताबिक 6 महीने में होनी चाहिए नीलामी, लेकिन सालों से अटकी है प्रक्रिया।
CG News:छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’, छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के पुलिस थाने अब किसी कबाड़खाने से कम नहीं लगते। यहां विभिन्न अपराधों और दुर्घटनाओं में जब्त की गईं लगभग 4000 से ज्यादा गाड़ियां खुले आसमान के नीचे सड़ रही हैं। आलम यह है कि जिला बनने से भी पहले (2007) की गाड़ियां आज तक धूल फांक रही हैं, लेकिन न तो उनके मालिक उन्हें छुड़ाने आ रहे हैं और न ही प्रशासन इनकी नीलामी के लिए कोई ठोस कदम उठा रहा है।
थाने में जगह नहीं, हर तरफ कबाड़ ही कबाड़
बालोद जिले के 13 थानों और 4 चौकियों का नजारा बेहद चौंकाने वाला है। जहां तक नजर जाती है, वहां तक दोपहिया और चारपहिया वाहनों का ढेर लगा है। ये वाहन अब सिर्फ लोहे के ढांचे में तब्दील हो चुके हैं। जिला मुख्यालय के कोतवाली थाने में ही पूरा परिसर इन कबाड़ हो चुकी गाड़ियों से भरा पड़ा है। इन वाहनों से कीमती पार्ट्स और पेट्रोल-डीजल कब के गायब हो चुके हैं।छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’
क्यों सड़ रही हैं करोड़ों की गाड़ियां? जानिए असली वजहें
करोड़ों रुपये की संपत्ति के इस तरह बर्बाद होने के पीछे कई प्रशासनिक और प्रक्रियात्मक कारण हैं:
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जटिल नीलामी प्रक्रिया: वाहनों की नीलामी की प्रक्रिया बेहद लंबी और कागजी कार्यवाही से भरी होती है।
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जिम्मेदारी से बचाव: कई थानेदार नीलामी की जवाबदेही और जटिल प्रक्रिया से बचने के लिए इसे टालते रहते हैं, ताकि उनके कार्यकाल में यह झंझट न आए।
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अदालती मामले: कई वाहन अदालती मुकदमों से जुड़े होते हैं, जिनकी नीलामी केस खत्म होने के बाद ही हो सकती है, जिसमें सालों लग जाते हैं।
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कीमत तय करने की चुनौती: सालों बाद वाहनों की सही कीमत तय करना भी एक बड़ी चुनौती होती है।
सड़ती गाड़ियां, लुटते पार्ट्स और सरकार को चपत
इन वाहनों की देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं होने से ये पूरी तरह बर्बाद हो रहे हैं।
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धूप और बारिश में सड़कर गाड़ियों की बॉडी गल चुकी है।
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कई गाड़ियों के टायर दीमक खा गए हैं।
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असामाजिक तत्व इनके इंजन, बैटरी और अन्य कीमती पार्ट्स चोरी कर ले जाते हैं।
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सबसे बड़ा नुकसान सरकारी खजाने को हो रहा है। अगर समय पर इनकी नीलामी हो तो सरकार को करोड़ों रुपये का राजस्व मिल सकता है।
क्या कहता है नियम और क्या है हकीकत?
नियम के अनुसार, किसी भी लावारिस जब्त वाहन के निस्तारण की प्रक्रिया छह महीने के भीतर शुरू हो जानी चाहिए। पुलिस को वाहन जब्त कर (धारा 102 के तहत) इसकी जानकारी न्यायालय को देनी होती है। इसके बाद एसडीएम के निर्देश पर सार्वजनिक सूचना जारी की जाती है और मालिक के न आने पर नीलामी का आदेश दिया जाता है।छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’
लेकिन हकीकत यह है कि यह नियम सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गया है। सालों बीतने के बाद भी नीलामी प्रक्रिया अटकी हुई है। पुलिस अधिकारी बस यही रटा-रटाया जवाब देते हैं कि “नीलामी की प्रक्रिया चल रही है और उच्च अधिकारियों के निर्देश पर इसे पूरा किया जाएगा।”छत्तीसगढ़ के थाने बने ‘वाहनों का कब्रिस्तान’









