
छत्तीसगढ़ में धान पर बड़ा खेल: मिलरों की मनमानी, मार्कफेड की चुप्पी! करोड़ों का सरकारी धान ‘भगवान भरोसे’, बैंक गारंटी भी हुई एक्सपायर
छत्तीसगढ़ में धान पर बड़ा खेल: मिलरों की मनमानी, मार्कफेड की चुप्पी! छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में धान खरीदी और कस्टम मिलिंग को लेकर एक बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया है, जो एक बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है। एक तरफ जहां सरकार नए खरीफ सीजन (2024-25) की तैयारियों में जुटी है, वहीं पिछले सीजन का करोड़ों रुपये का धान अभी भी राइस मिलरों के पास फंसा हुआ है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस धान की सुरक्षा के लिए ली गई बैंक गारंटी भी अब खत्म हो चुकी है, और जिम्मेदार विभाग ‘मार्कफेड’ इस पर कोई सख्त कार्रवाई करता नहीं दिख रहा है।
क्या है पूरा मामला?
रायगढ़ जिले में नए धान खरीदी सीजन की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन पिछले सीजन का हिसाब-किताब अभी तक पूरा नहीं हुआ है। जिले के कई राइस मिलरों ने सरकार से जो धान कस्टम मिलिंग के लिए उठाया था, उसके बदले में अभी तक पूरा चावल जमा नहीं किया है। मामला तब और गंभीर हो जाता है जछत्तीसगढ़ में धान पर बड़ा खेल: मिलरों की मनमानी, मार्कफेड की चुप्पी! ब पता चलता है कि मिलरों द्वारा जमा की गई अमानत राशि (बैंक गारंटी) की समय-सीमा भी समाप्त हो चुकी है।
अनुबंध की शर्तें और मिलरों की जिम्मेदारी
पूरे सिस्टम को समझने के लिए इस प्रक्रिया को जानना जरूरी है:
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अनुबंध: खरीफ विपणन वर्ष 2024-25 के लिए 128 मिलरों ने मार्कफेड के साथ 272 अनुबंध किए थे।
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शर्त: मिलरों को 6 महीने के भीतर अपनी क्षमता के अनुसार धान का उठाव कर, उसकी मिलिंग करके चावल नागरिक आपूर्ति निगम (NAN) और एफसीआई (FCI) में जमा करना था।
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सुरक्षा: उठाए गए धान की कीमत के बराबर मिलरों को बैंक गारंटी जमा करनी होती है, ताकि अगर वे चावल न जमा करें तो सरकार उस गारंटी से अपने नुकसान की भरपाई कर सके।
जब खत्म हो गई सुरक्षा की ‘गारंटी’
मिलरों ने धान तो उठा लिया, लेकिन कई कारणों (जैसे आवंटन की कमी) के चलते समय पर पूरा चावल जमा नहीं कर पाए। अब इस मामले में सबसे बड़ी चूक सामने आई है:
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एक्सपायर हुई बैंक गारंटी: अधिकांश मिलरों की बैंक गारंटी जून के पहले हफ्ते में ही एक्सपायर हो चुकी है।
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कोई कार्रवाई नहीं: गारंटी की अवधि समाप्त होने के बावजूद, मार्कफेड ने न तो इसे रिन्यू कराने के लिए कोई सख्ती दिखाई और न ही मिलों में जाकर यह जांच की कि उनके पास कितना धान बचा है (भौतिक सत्यापन)।
इसका सीधा मतलब यह है कि करोड़ों का सरकारी धान बिना किसी सुरक्षा गारंटी के मिलरों के पास पड़ा है।
मार्कफेड की भूमिका पर क्यों उठ रहे हैं गंभीर सवाल?
इस पूरे मामले में मार्कफेड की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। आरोप लग रहे हैं कि मार्कफेड मिलरों को खुला संरक्षण दे रहा है। अगर समय पर चावल जमा नहीं हुआ और बैंक गारंटी भी खत्म हो गई, तो विभाग को तुरंत एक्शन लेना चाहिए था, जैसे:
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मिलों में रखे धान का भौतिक सत्यापन करना।
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मिलरों पर बैंक गारंटी की अवधि बढ़ाने के लिए दबाव बनाना।
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डिफॉल्टर मिलरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करना।
लेकिन इनमें से कोई भी कदम नहीं उठाया गया, जिससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर इस लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है?
सरकारी धान ‘भगवान भरोसे’, कौन है जिम्मेदार?
बिना किसी सुरक्षा और निगरानी के, सरकारी धान पूरी तरह से ‘भगवान भरोसे’ मिलरों के पास छोड़ दिया गया है। यह स्थिति न केवल सरकारी खजाने के लिए एक बड़ा जोखिम है, बल्कि यह पूरी व्यवस्था पर एक गंभीर सवालिया निशान भी लगाती है। अगर मिलर धान वापस करने में आनाकानी करते हैं, तो सरकार को करोड़ों का चूना लग सकता है, और इसकी वसूली करना भी मुश्किल होगा क्योंकि सुरक्षा गारंटी अब महज एक कागज का टुकड़ा रह गई है।छत्तीसगढ़ में धान पर बड़ा खेल: मिलरों की मनमानी, मार्कफेड की चुप्पी!









