
शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला, आरोप खारिज
बिलासपुर : शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाने के गंभीर आरोप को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी मामले को साबित करने के लिए पेश किए गए सबूतों का कानूनी रूप से वैध होना अनिवार्य है। इस केस में, अचानक पेश किए गए एक द्वितीयक साक्ष्य (photocopy) को कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया, जिससे पूरा मामला ही पलट गया।
क्यों खारिज हुए आरोप? द्वितीयक साक्ष्य पर हाईकोर्ट की बड़ी टिप्पणी
बिलासपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि केवल क्रॉस-एग्जामिनेशन (जिरह) के दौरान किसी दस्तावेज़ की फोटोकॉपी पेश कर देना कानून की नजर में पर्याप्त नहीं है। द्वितीयक साक्ष्य को तभी स्वीकार किया जा सकता है, जब यह साबित कर दिया जाए कि मूल दस्तावेज़ या तो खो गया है, नष्ट हो गया है, या जानबूझकर छिपाया जा रहा है। इस मामले में ऐसा कोई भी आधार प्रस्तुत नहीं किया गया। कोर्ट ने कहा कि झूठे या कमजोर सबूतों के आधार पर किसी मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला
प्राथमिक साक्ष्य का महत्व: कानून क्या कहता है?
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 का हवाला देते हुए कहा कि कानून का स्थापित सिद्धांत है कि किसी भी तथ्य को प्राथमिक साक्ष्य (Original Document) से ही साबित किया जाना चाहिए। द्वितीयक साक्ष्य केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में ही मान्य होता है, जिसके लिए ठोस आधार देना अनिवार्य है।शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्ष द्वितीयक साक्ष्य पेश करना चाहता है, तो उसे यह सिद्ध करना होगा कि मूल दस्तावेज़ क्यों नहीं प्रस्तुत किया जा सकता। बिना इस मूलभूत तथ्य को साबित किए, द्वितीयक साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता।शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला
जांच के दौरान क्यों नहीं पेश किया गया दस्तावेज़?
याचिकाकर्ता के वकील ने इस बात पर कड़ी आपत्ति जताई कि जिस कथित ‘इकरारनामे’ को सबूत के तौर पर पेश किया गया, उसका जिक्र न तो पुलिस जांच में था और न ही पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 161 या 164 के तहत दिए गए अपने बयानों में इसका उल्लेख किया था। इसे सीधे जिरह के दौरान रिकॉर्ड पर लाया गया, जो कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन है। कोर्ट ने इस दलील को सही माना और कहा कि जांच और चार्जशीट की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद अचानक से कोई नया दस्तावेज़ बिना उचित प्रक्रिया के स्वीकार नहीं किया जा सकता।शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला
क्या था पूरा मामला?
यह मामला सरगुजा जिले का है, जहाँ एक महिला ने विजय उरांव नामक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। महिला का आरोप था कि विजय ने उससे शादी का झूठा वादा किया और इस झांसे में रखकर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए, लेकिन बाद में शादी करने से मुकर गया। पुलिस ने शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और 417 (धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज कर चार्जशीट पेश की थी, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय कर दिए थे। जिरह के दौरान महिला द्वारा प्रस्तुत एक एग्रीमेंट की फोटोकॉपी को ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था, जिसे अब हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है।शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध का मामला: हाईकोर्ट ने सबूतों को लेकर सुनाया ऐतिहासिक फैसला









