गुंडरदेही में महावीर जयंती का पावन पर्व प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा

गुंडरदेही ब्लॉक में हर साल की भांति महावीर जयंती का पावन पर्व प्रियदर्शना श्री जी म.सा. के सानिध्य में कल 21 अप्रैल को गुंडरदेही के शारदा वाटिका में जैन श्री संघ गुंडरदेही के द्वारा मनाया जा रहा है जिसमें आसपास के सभी जैन समाज के बंधुओ एवं समस्त नगरवासियों की उपस्थिति में कार्यक्रम का समय
सुबह 6 बजे से 7 बजे प्रभात फेरी
7.00 से 7.30 बजे प्रार्थना
7.30 से 8.30 बजे नाश्ता
8.30 से 12 बजे तक म.सा. का प्रवचन एवम बच्चों का सांस्कृतिक कार्यक्रम होगा ।
उक्त जानकारी समाज प्रमुख प्रमोद जैन ने दी है।
भगवान महावीर की जन्म जयंती चैत्र सुदी 13 को संपूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष मनाई जाती है भगवान महावीर का जन्म आज से 2600वर्ष पूर्व क्षत्रिय कुंड ग्राम में हुआ था पुण्यवान जीव के गर्भ में आते ही राज्य में धन-धान्य यश कीर्ति की वृष्टि होने लगी अतः पिता सिद्धार्थ एवं माता त्रिशला ने उनका वर्धमान नामकरण किया अपने वीरतापूर्ण कार्यों से वे वीर ,अतिवीर ,महावीर नाम से सुविख्यात हुए।
आर्य भूमि भारत देश तीर्थंकरों और महापुरुषों का देश है ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर हुए और भगवान महावीर 24 वे तीर्थंकर हुए प्रभु ऋषभदेव के पुत्र भारत चक्रि से ही इस देश का नाम भारत देश पड़ा ।समय-समय पर भारत देश की प्रजा को तीर्थंकरों ने धर्म और मोक्ष का मार्ग दिखाया है हम भारतवासी वास्तव में भाग्यशाली हैं हमें तपस्वी प्रभु महावीर की भूमि में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है श्री पुरुषोत्तम दास टंडन ने लिखा है “प्रभु श्री महावीर एक महान तपस्वी थे” भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने भाषण में अक्सर कहा करते थे मैं अपने आप को धन्य मानता हूं कि मुझे महावीर प्रभु के देश में रहने का सौभाग्य मिला । भगवान महावीर वित्तरागी साधक थे उन्होंने द्वेष से भी राग को अधिक खतरनाक जानकर राग मोह आसक्ति को जीतने की प्रेरणा दी। द्वेष से तो हम स्वयं को बचा लेते हैं किंतु राग को अच्छा मानकर उसके जाल में फसते ही चले जाते हैं। अतः राग भावों को जाने समझे और राग के बंधन तोडे।
भगवान महावीर ने कहा
रागो य दोसो बीय कम्म बोयम
राग द्वेष यही दो कर्मबीज है संसार वृक्ष इन्हीं से वृद्धिगत होता है वह पुन असंख्य बीजों की उत्पत्ति कर देता है इतनी गहन सटीक बात कहना ही महावीर की महावीरता थी यह बात उनके वचनों में ही नहीं वरन् आचरण में समाहित थी ।
एक विदेशी विद्वान खरेंद्र स्टीवेंशन कहते हैं “जब तक भारत में जैन धर्म की प्रधानता थी तब तक का इतिहास स्वर्ण अक्षरों में लिखने लायक था”
जो साधक राग विजेता है वह मोह विजेता है जो मोह विजेता है वह संसार विजेता है भगवान महावीर स्वामी की स्वयं वित्त रागी साधक थे से शुद्धत्मा भाव से रमन करते हुए वे सिद्ध बने उन्होंने अपने उपासक उपाशिकाओं को भी यही मार्ग दिखाया।









