म्यूटेशन विवाद: तहसीलदार सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता, एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला

हाईकोर्ट का बड़ा निर्णय: म्यूटेशन के लिए सिविल कोर्ट का आदेश जरूरी नहीं
इंदौर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने एक अहम फैसले में कहा कि तहसीलदार किसी व्यक्ति को यह प्रमाणित करने के लिए सिविल कोर्ट में नहीं भेज सकता कि वह मृतक संपत्ति मालिक का कानूनी उत्तराधिकारी है।
जस्टिस प्रणय वर्मा की एकल पीठ ने कहा कि तहसीलदार को वंशावली की जांच करके स्वयं ही नामांतरण (Mutation) की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। म्यूटेशन विवाद: तहसीलदार सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता, एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला
तहसीलदार का कर्तव्य, कोर्ट का हस्तक्षेप नहीं
? “आवेदक को सिविल कोर्ट से यह घोषणा करवाने की जरूरत नहीं है कि वह मृतक का कानूनी उत्तराधिकारी है। तहसीलदार को स्वयं यह तय करना होगा और यह उसका कर्तव्य भी है।”
इस फैसले के साथ ही तहसीलदार, तहसील डॉ. अंबेडकर नगर (महू), जिला इंदौर द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया गया। म्यूटेशन विवाद: तहसीलदार सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता, एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला
तहसीलदार का आदेश क्यों हुआ खारिज?
? याचिकाकर्ता राहुल शुक्ला ने अपने मृतक भाई राजीव शुक्ला की भूमि पर म्यूटेशन के लिए आवेदन दिया था।
? तहसीलदार ने प्रकाशन करवाया, लेकिन कोई आपत्ति नहीं आई।
? हल्का पटवारी की रिपोर्ट में भी पुष्टि हुई कि मृतक का कोई अन्य उत्तराधिकारी नहीं है।
? बावजूद इसके, तहसीलदार ने आवेदक को सिविल कोर्ट से घोषणा प्राप्त करने का निर्देश दिया, जिसे हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। म्यूटेशन विवाद: तहसीलदार सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता, एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला
हाईकोर्ट का आदेश: तहसीलदार करें फैसला
संहिता, 1959 की धारा 109, 110 के तहत हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि –
✔️ तहसीलदार को स्वयं रिकॉर्ड की जांच करके निर्णय लेना होगा।
✔️ आवेदक को सिविल कोर्ट से प्रमाण पत्र लेने की कोई जरूरत नहीं।
✔️ विवादित आदेश रद्द किया जाता है और तहसीलदार को नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है। म्यूटेशन विवाद: तहसीलदार सिविल कोर्ट नहीं भेज सकता, एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला









