पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन: हंसाने वाला ‘ब्लैक डायमंड’ रुला गया, ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ की आवाज खामोश

पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन: हंसाने वाला ‘ब्लैक डायमंड’ रुला गया, ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ की आवाज खामोश
हिन्दी काव्य मंच के दिग्गज और अपनी हास्य-व्यंग्य कविताओं से करोड़ों दिलों पर राज करने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का निधन हो गया है। ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ के नारे को दुनिया भर में पहचान दिलाने वाले डॉ. दुबे ने गुरुवार को रायपुर के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन से साहित्य और कला जगत में शोक की लहर है।
कैसे हुआ निधन?
जानकारी के अनुसार, 24 जून की रात को सीने में तकलीफ महसूस होने पर डॉ. सुरेंद्र दुबे को रायपुर के एडवांस कॉर्डियक इंस्टीट्यूट (ACI) में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने जांच के बाद 25 जून को उनकी एंजियोप्लास्टी की और दो स्टेंट डाले थे, लेकिन इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन
‘ब्लैक डायमंड’ और ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’
डॉ. दुबे खुद को गर्व से ‘ब्लैक डायमंड’ कहते थे और अक्सर मंचों पर कहते थे कि ब्लैक डायमंड, व्हाइट डायमंड से कहीं ज्यादा कीमती और दुर्लभ होता है। उन्होंने ही ‘छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया’ की पंक्ति को न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि देश-विदेश के मंचों पर भी लोकप्रिय बनाया और इसे छत्तीसगढ़ के स्वाभिमान का प्रतीक बना दिया।पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन
साहित्य और राजनीति जगत में शोक की लहर
उनके निधन की खबर फैलते ही, राजनीति से लेकर साहित्य जगत तक शोक की लहर दौड़ गई। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इसे राज्य के लिए एक अपूरणीय क्षति बताया। राज्यपाल, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास और शैलेष लोढ़ा समेत देशभर की कई हस्तियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन
एक नजर उनके शानदार करियर पर
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जन्म: 8 अगस्त 1953, बेमेतरा (छत्तीसगढ़)
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सम्मान: भारत सरकार द्वारा 2010 में ‘पद्मश्री’ और 2008 में ‘काका हाथरसी हास्य रत्न’ सम्मान।
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उपलब्धि: वे देश के एकमात्र ऐसे हास्य-व्यंग्य कवि थे, जिन्होंने ऐतिहासिक लाल किले के मंच से सबसे अधिक बार काव्य पाठ किया।
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अंतरराष्ट्रीय मंच: उन्होंने 25 से अधिक देशों में अपनी काव्य प्रतिभा का प्रदर्शन किया था।
आम आदमी की आवाज और आखिरी प्रस्तुति
डॉ. दुबे की कविताएं आम जनजीवन से गहराई से जुड़ी होती थीं। वे हंसाते-हंसाते समाज की कुरीतियों और व्यवस्था पर तीखा व्यंग्य करते थे, जिसमें एक गहरा सामाजिक संदेश छिपा होता था। उन्होंने अपना अंतिम काव्य पाठ 22 जून को रायपुर के दीनदयाल ऑडिटोरियम में आयोजित ‘काव्य कुंभ’ कार्यक्रम में किया था, जहां उन्होंने हमेशा की तरह अपने अनूठे अंदाज से श्रोताओं को खूब हंसाया था। उनका जाना साहित्य जगत के एक चमकते सितारे का टूटना है।पद्मश्री सुरेंद्र दुबे का निधन









