बिलासपुर l बिलासपुर के धनीराम साहू की संघर्षमय कहानी ने न्याय की जीत का अनोखा उदाहरण पेश किया है। शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, कोनी में हमाल के पद से शुरुआत करने वाले धनीराम साहू को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने टायपिस्ट बना दिया। यह मामला वर्षों से न्याय की गुहार लगाने और अंततः जीत हासिल करने का प्रतीक बन गया है।सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से हमाल बना टायपिस्ट
हमाल से टायपिस्ट बनने का सफर
1988 में धनीराम साहू की नियुक्ति शासकीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय, कोनी, बिलासपुर में हमाल के पद पर हुई थी। दो साल बाद, 1990 में, उन्हें इस पद पर नियमित किया गया। 1997 में जब कॉलेज के प्राचार्य द्वारा चौथी श्रेणी के कर्मचारियों के लिए टायपिस्ट पद हेतु विज्ञापन जारी किया गया, तब धनीराम ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए आवेदन दिया। हिंदी और अंग्रेजी टाइपिंग परीक्षा पास करने के बाद, उन्होंने परीक्षा दी और इंटरव्यू के बाद मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया, जिससे उन्हें टायपिस्ट के पद पर नियुक्त किया गया।सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से हमाल बना टायपिस्ट
कोर्ट के आदेश के बाद भी संघर्ष
हालांकि, 22 जुलाई 1999 को धनीराम की टायपिस्ट के पद पर नियुक्ति को गलत ठहराते हुए उन्हें वापस हमाल के पद पर डिमोट कर दिया गया। इस निर्णय के खिलाफ धनीराम ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला देते हुए राज्य सरकार को उन्हें टायपिस्ट पद पर पुनः नियुक्त करने का निर्देश दिया। लेकिन, आदेश के बावजूद उनकी नियुक्ति नहीं की गई, जिसके चलते धनीराम को अवमानना याचिका दाखिल करनी पड़ी।सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से हमाल बना टायपिस्ट
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
धनीराम ने न्याय के लिए संघर्ष जारी रखा और अपने अधिवक्ता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए धनीराम को टायपिस्ट के पद पर बहाल करने और उन्हें बकाया वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया। इस फैसले ने न केवल धनीराम को न्याय दिलाया, बल्कि एक महत्वपूर्ण मिसाल भी कायम की।सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से हमाल बना टायपिस्ट