व्यापार में दूरी, युद्ध में दोस्ती? अमेरिका के दोहरे रवैये पर उठते सवाल

व्यापार में दूरी, युद्ध में दोस्ती? अमेरिका के दोहरे रवैये पर उठते सवाल, क्या आपने कभी सोचा है कि एक देश व्यापार में कड़े प्रतिबंध लगाता है, लेकिन ठीक उसी समय सैन्य अभ्यास में घनिष्ठ साझेदारी निभाता है? यह विरोधाभास आजकल अमेरिका और भारत के संबंधों में देखने को मिल रहा है, जिसने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
अमेरिका की व्यापारिक सख्ती और सैन्य सहयोग: एक अजीब दास्तान
एक ओर अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाकर व्यापारिक संबंधों में सख्ती दिखाई है, तो दूसरी ओर वही अमेरिका भारतीय सेना के साथ अलास्का की बर्फीली वादियों में संयुक्त ‘युद्ध अभ्यास’ कर रहा है। हाल ही में, भारत पर टैरिफ 50% तक बढ़ा दिए गए, जिससे भारतीय व्यापार पर सीधा असर पड़ा। इसके पीछे एक कारण रूस से भारत द्वारा सस्ते कच्चे तेल की खरीद बताया गया। फिर भी, 1 सितंबर से 14 सितंबर तक अलास्का में हुए इस सैन्य अभ्यास में 450 भारतीय सैनिकों ने हिस्सा लिया, जिसका नेतृत्व मद्रास रेजिमेंट की एक बटालियन ने किया।
ट्रंप की टैरिफ नीति और भारत को झटका
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में भारत के कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाया गया। यह नीति तब और स्पष्ट हुई जब पीएम मोदी, राष्ट्रपति पुतिन और शी जिनपिंग चीन में एक साथ नजर आए। इस मुलाकात ने ट्रंप प्रशासन को चौंका दिया और शायद उन्हें यह महसूस कराया कि वे भारत को खो रहे हैं।
व्यापारिक टकराव के बावजूद सैन्य अभ्यास क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब व्यापारिक संबंध इतने बिगड़ चुके हैं, तो अमेरिका भारतीय सेना के साथ सैन्य अभ्यास क्यों कर रहा है? इसका एक प्रमुख कारण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन को टक्कर देना है। अमेरिका भारत को रणनीतिक रूप से अपने पक्ष में रखना चाहता है ताकि वह चीन को स्पष्ट संदेश दे सके।
भारत-अमेरिका सहयोग और टकराव के महत्वपूर्ण बिंदु
-
टैरिफ वृद्धि बनाम रक्षा सौदे: अमेरिका ने भारत से आयात पर टैरिफ तो बढ़ाए, लेकिन अपने रक्षा सौदों और सैन्य अभ्यासों में कोई कटौती नहीं की।
-
भू-राजनीतिक संतुलन: अमेरिका चाहता है कि भारत रूस और चीन से दूरी बनाए, लेकिन खुद पाकिस्तान से अपने कूटनीतिक और राहत संबंध मजबूत करता जा रहा है।
-
पश्चिमी मीडिया की चुप्पी: अमेरिका के इस विरोधाभासी व्यवहार पर पश्चिमी मीडिया ने चुप्पी साध रखी है, जबकि भारतीय मीडिया में यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया जा रहा है।
राहत में भेदभाव: पाकिस्तान को मदद, भारत को नजरअंदाज
हाल ही में, अमेरिका ने पाकिस्तान में राहत सामग्री भेजने के लिए अपना C-17 विमान तैनात किया। वहीं, भारत के पंजाब, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और आपदा के बावजूद ऐसी कोई मदद नहीं दी गई। इस विरोधाभासी स्थिति के बावजूद, भारत और अमेरिका की सेनाएं साथ में युद्ध की रिहर्सल कर रही हैं, जो अमेरिका की रणनीति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
भविष्य के लिए सुलगते सवाल
-
क्या भारत सरकार अमेरिका से इस मुद्दे पर औपचारिक बातचीत करेगी?
-
आने वाले महीनों में भारत में और कौन-कौन से द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास प्रस्तावित हैं?
-
क्या अमेरिका भारत को चीन के खिलाफ सिर्फ एक मोहरा बनाना चाहता है?
इन सवालों पर विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय की प्रतिक्रियाएं आने वाले दिनों में महत्वपूर्ण होंगी।
रणनीतिक पाखंड और कूटनीतिक चुनौती
वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (रि.) अरविंद बहल ने अमेरिका की इस नीति को “रणनीतिक पाखंड” बताया है। उन्होंने कहा कि जब अमेरिका भारत को आर्थिक मोर्चे पर कमजोर करने की कोशिश कर रहा है, उसी समय सामरिक मोर्चे पर हाथ मिलाना एक विरोधाभास है। भारत को अब एक स्पष्ट और सख्त नीति बनानी चाहिए।
अमेरिका की यह नीति—जहां एक ओर वह व्यापारिक दबाव बना रहा है और दूसरी ओर सैन्य दोस्ती निभा रहा है—निश्चित रूप से कूटनीतिक तौर पर विरोधाभासी दिख रही है। यह दोहरा रवैया भारत के लिए भी एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।









