40 साल पुरानी घूसखोरी, जो बनी मानसिक प्रताड़ना

नई दिल्ली। 40 साल पुरानी घूसखोरी, न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर है – यह कहावत दिल्ली हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले में चरितार्थ हुई। 40 साल से चल रहे भ्रष्टाचार के एक मामले में अदालत ने 90 वर्षीय दोषी को महज एक दिन की कैद की सजा सुनाई, यह रेखांकित करते हुए कि चार दशकों तक चली कानूनी कार्यवाही अपने आप में एक गंभीर सजा थी।
40 साल पुरानी घूसखोरी, जो बनी मानसिक प्रताड़ना
यह मामला 1984 का है, जब भारतीय राज्य व्यापार निगम (STC) के तत्कालीन मुख्य विपणन प्रबंधक सुरेंद्र कुमार पर एक कंपनी से 15,000 रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगा था। आरोप था कि कुमार ने 140 टन सूखी मछली की आपूर्ति के ऑर्डर को मंजूरी देने के एवज में यह रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता की सूचना पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने जाल बिछाया और कुमार को 7,500 रुपये की पहली किस्त लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार कर लिया। 40 साल पुरानी घूसखोरी
इसके बाद जो हुआ, वह भारतीय न्याय प्रणाली की धीमी गति का एक ज्वलंत उदाहरण बन गया। मामले का ट्रायल पूरा होने में ही करीब 19 साल लग गए। साल 2002 में निचली अदालत ने सुरेंद्र कुमार को दोषी ठहराते हुए तीन साल कैद और 15,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। कुमार ने इस फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में अपील दायर की, लेकिन उनकी यह अपील अगले 22 सालों तक लंबित रही। 40 साल पुरानी घूसखोरी
‘डैमोकल्स की तलवार’ और हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने इस मामले को “अत्यधिक देरी” का एक क्लासिक मामला बताया। उन्होंने अपने फैसले में प्रसिद्ध यूनानी कथा ‘डैमोकल्स की तलवार’ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पिछले 40 सालों से इस मामले का लंबित रहना आरोपी के सिर पर एक पतले धागे से लटकी तलवार की तरह था, जो निरंतर भय और मानसिक पीड़ा का स्रोत बना रहा 40 साल पुरानी घूसखोरी
न्यायमूर्ति सिंह ने टिप्पणी की कि यह लंबी अनिश्चितता संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। अदालत ने माना कि अपीलकर्ता की 90 वर्ष की आयु और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को देखते हुए उन्हें जेल भेजना अनुचित होगा, क्योंकि इससे उन्हें अपूरणीय क्षति हो सकती है।
एक दिन की सजा और न्याय का संदेश
अदालत ने कहा कि सुरेंद्र कुमार ने 2002 में निचली अदालत द्वारा लगाया गया 15,000 रुपये का जुर्माना पहले ही जमा कर दिया था। इन सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने उनकी तीन साल की सजा को घटाकर एक दिन कर दिया, जिसे उन्होंने गिरफ्तारी के बाद हिरासत में पहले ही पूरा कर लिया था। 40 साल पुरानी घूसखोरी
यह फैसला न्याय प्रणाली में अंतर्निहित मानवीय दृष्टिकोण को उजागर करता है, लेकिन साथ ही यह उन हजारों मामलों पर भी एक गंभीर टिप्पणी है जो दशकों से अटके हुए हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि समय पर मिलना भी चाहिए।40 साल पुरानी घूसखोरी









