गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़ा, आरोपों के घेरे में अधिकारी

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में शिक्षा विभाग के भीतर फर्जी संविलियन और वेतन घोटाले का मामला तेजी से उभर रहा है। इस घोटाले में शामिल कर्मचारियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न होने के चलते इनके हौसले बुलंद हो गए हैं। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इन घोटालों के पीछे राजनीतिक संरक्षण और पैसों का खेल हो सकता है। ऐसी स्थितियों में शिक्षा विभाग बदनाम हो रहा है और कई फर्जी कर्मचारी सवालों के घेरे में हैं।
फर्जी संविलियन और नौकरी का खेल
इस पूरे मामले में शिक्षिका अभिलाषा राय का नाम सामने आया है, जो कि शिक्षक के पद पर पदस्थ हैं, लेकिन उन्होंने आज तक स्कूल में एक भी दिन नहीं पढ़ाया। उनके बावजूद, उन्हें फर्जी तरीके से संविलियन का लाभ मिल चुका है। इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी को करीब 6 महीने पहले शिकायत दी गई थी, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
8 साल की गैरहाजिरी, फिर भी नौकरी पक्की
शिक्षिका अभिलाषा राय की नियुक्ति 12 सितंबर 2008 को प्राइमरी स्कूल कुम्हारी में हुई थी, लेकिन वे 2009 से लेकर 2017 तक लगातार 8 साल तक अनुपस्थित रहीं। इसके बावजूद, उन्हें नौकरी से बर्खास्त नहीं किया गया, बल्कि 1 जुलाई 2018 से उन्हें सहायक शिक्षक (एलबी) के पद पर संविलियन का लाभ दिया गया।
आरोप: 123 दिन की अर्जित छुट्टी, 92 दिन का अवकाश
शिक्षिका अभिलाषा राय ने बिना किसी ठोस मेडिकल प्रमाण पत्र के 123 दिन की अर्जित और 92 दिन का असाधारण अवकाश लिया है, जो गंभीर सवाल खड़े करता है। इसके अलावा, उन्हें बिना किसी मेडिकल बोर्ड प्रमाण पत्र के कार्यभार ग्रहण कराया गया, जिसमें तत्कालीन जिला शिक्षा अधिकारी की भूमिका संदिग्ध है।
वेतन और वित्तीय अनियमितता
मरवाही विकास खंड के शिक्षा अधिकारी के अनुसार, अभिलाषा राय का वेतन 1 जुलाई 2018 से दिया गया है, लेकिन इस अवधि के वेतन भुगतान की जांच आवश्यक है। तत्कालीन अधिकारियों पर वित्तीय अनियमितता करते हुए लाखों रुपये के नुकसान का आरोप भी लगाया गया है।
निष्कर्ष: शिकायतें और लेनदेन के आरोप
इतने गंभीर आरोपों के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है, जो संदेह पैदा करती है। शिकायतकर्ता ने डीईओ पर आरोप लगाया है कि उन्होंने इस मामले को पैसों के लेनदेन से रफा-दफा कर दिया है।



![शिक्षा सत्र का डेढ़ माह बीता, अब तक स्कूलों में नहीं पहुंचीं किताबें, पुरानी पुस्तकों के सहारे भविष्य की पढ़ाई गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: छत्तीसगढ़ में नया शैक्षणिक सत्र 2025-26 शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक का समय हो गया है, लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले के सरकारी स्कूलों में छात्रों के बस्ते अब भी खाली हैं।[1] पाठ्य पुस्तक निगम की लापरवाही के चलते अधिकांश कक्षाओं की किताबें अब तक स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई हैं।[1][2] इस स्थिति के कारण छात्रों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है और वे पुरानी किताबों से काम चलाने को मजबूर हैं।[1] त्रैमासिक परीक्षा सिर पर, कैसे पूरा होगा कोर्स? स्कूलों में किताबों की यह कमी शिक्षकों और अभिभावकों दोनों के लिए चिंता का बड़ा कारण बन गई है। लगभग डेढ़ महीने बाद त्रैमासिक परीक्षाएं होनी हैं, ऐसे में बिना नई किताबों के पाठ्यक्रम को समय पर पूरा करना एक बड़ी चुनौती है।[1] जिले के प्राइमरी से लेकर मिडिल स्कूलों तक में यही स्थिति है। उदाहरण के लिए, कक्षा 6वीं के छात्रों को सिर्फ गणित की किताब मिली है, जबकि 8वीं के छात्रों को भी कुछ ही विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं।[1] नए पाठ्यक्रम के कारण पुरानी किताबों से पढ़ाई करना भी पूरी तरह संभव नहीं हो पा रहा है।[1] क्यों हुई किताबों के वितरण में देरी? इस साल किताबों के वितरण में देरी के कई कारण सामने आ रहे हैं: तकनीकी खामियां: इस वर्ष भ्रष्टाचार रोकने के लिए किताबों पर बारकोड लगाए गए हैं।[3][4] लेकिन पाठ्य पुस्तक निगम के पोर्टल का सर्वर बार-बार डाउन होने से स्कूलों में किताबों की स्कैनिंग और डेटा अपलोडिंग का काम अटक गया है, जिससे वितरण रुका हुआ है।[5][6] पुराने डेटा पर छपाई: किताबों की छपाई पुराने यू-डायस (UDISE) डेटा और पिछले साल के स्टॉक के आधार पर की गई। इसमें नए दाखिलों और छात्रों की बढ़ी हुई संख्या का अनुमान नहीं लगाया गया, जिससे कई स्कूलों में मांग के अनुरूप किताबें नहीं पहुंचीं।[1][2] वितरण में अव्यवस्था: पाठ्य पुस्तक निगम से स्कूलों तक किताबें पहुंचाने की प्रक्रिया में भी अव्यवस्था देखने को मिली है।[2][5] प्रशासन के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस हालांकि, पाठ्य पुस्तक निगम और शिक्षा विभाग के अधिकारी जल्द ही किताबें पहुंचाने का दावा कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।[2][5] स्कूल प्रबंधन द्वारा जिला कार्यालय को किताबों की मांग के लिए पत्र लिखे जाने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।[1] इस लापरवाही का खामियाजा सीधे तौर पर प्राइमरी और मिडिल स्कूल के मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। अभिभावकों और शिक्षकों ने प्रशासन से मांग की है कि जल्द से जल्द किताबों की व्यवस्था की जाए ताकि छात्रों की पढ़ाई और भविष्य अधर में न लटके।[1]](https://nidarchhattisgarh.com/wp-content/uploads/2025/08/16a.jpg)





